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कोई और है


उथल पुथल
इतनी हो रही हैं
कैसा चल रहा दौर है।
मैं हूँ सामने बैठा मगर
दिख रहा कोई और है।।
महंगाई की इस मार ने
कमर तोड़ दी गरीबी की
मैं हूं सामने बैठा बुत बने
दिख रहा कोई और है।
इस वहसदगर्दी में
वह नाम पूछ कत्ल कर रहा
उसका दाव तो कुछ और है
मैं हूँ सामने बैठा
सुबह के इंतजार में
जग रहा कोई और है।
मैं हूं सामने बैठा
रोता बिलखता
मुस्कुराता दिख
रहा कोई और है।।
गश खौफ से खाता है
मुसाफिर यहां,
मत पूछो क्यों ये शोर है
मेरी सामने लाश पड़ी है
पर मुर्दा कोई और है।।

नीरज कुमार नीर
इटारसी

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