
{इस लेख में— श्रद्धा भक्ति के साथ गायत्री मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र की चर्चा}
दुख में सुमिरन सब करे सुख में करे न कोय ।
जो सुख में सुमिरन करे दुख काहे का होय ।।
बहुत सारे लोग दुख में सुमिरन करते हैं, बहुत सारे लोग भगवान को सुमिरन की जगह कठोर वचन भी कहते हैं ।
ऐसा नहीं है कि सब सुमिरन ही करते हैं दुख में ।।
बहुत सारे लोग दुख में सुमिरन नहीं कर पाते, जब तक सुख रहता है तब तक ही सुमिरन हो पाता है ।
हमने सुना था कि– अपनी-अपनी ढपली अपना अपना राग ।।
लेकिन यह तो वही हुआ ना कि, हम भगवान को मानते हैं, लेकिन भगवान की नहीं मानते हैं । हम पंडितजी को प्रणाम करते हैं, प्रेम का भाव दर्शाते हैं लेकिन पंडित जी के कहे हुये को नहीं मानते ।।
आदरणीय तुलसीदास जी ने लिखा है–
पूजिय विप्र सीलगुण हीना ।
कुछ लोग इसी चौपाई को कहते हैं —
{पूजहिं सकल गुण हीना । ध्यान रहे कि, सकल गुण से हीन होने से तो, ब्राह्मण रहा ही नहीं जा सकता । इसलिए कृपया इस चौपाई को इस ढंग से न पढ़ें }
कभी भी रामायण खोलकर उन्होंने देखा नहीं कि, क्या लिखा हुआ है, बस सुन लिया, किसी से– जो सुना उसी में कुछ और जोड़कर ज्ञानी बनना शुरू कर दिये ।
कुछ लोक अध्ययन किए हैं रामायण का– लेकिन उसका अर्थ परंपरागत रूप से कहते-सुनते आए हैं ।
ब्राह्मण शीलगुण से हीन हो तब भी पूजनीय है ।
बहुत सारे पंडित जी लोग सील गुण से परिपूर्ण हैं, वह यजमान के किसी कमजोरी को– उनसे कहते नहीं कि, हमारी यजमानी ना चली जाए, यजमान नाराज ना हो जाए इसीलिए यह सनातन धर्म का धार्मिक क्षेत्र तहस-नहस हो रहा है ।।
परन्तु है ध्यान रखना चाहिए—
निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय ।।
अर्थात् —
वही ब्राह्मण पूजनीय है जो {सील-लिहाज} छोड़कर समाज के हर वर्ग को, किसी भी व्यक्ति की कमी को, प्रेम से स्पष्ट बात बता दे कि, हमें अपनी इस कमजोरी के बारे में ध्यान देना चाहिए—
तभी पूजनीय है वह ब्राह्मण ।
ब्राह्मण स्पष्ट रूप से राजा को, भक्तगणों को, यजमानोंको वह अच्छे-बुरे की जानकारी अवश्य अपमान सहकर भी दे ।
इसी क्रम में सुंदर जीवन जीने के लिए एक विचारभरा लेख—
हमारे ऋषियों ने सुमिरन के सम्बन्ध में कहा है–
कुटिल हो क्रूर हो खल हो मगर हो उनसे लगन,
हजार ऐबों का वह खुद सुधार करते हैं,
जो सच्चे दिल से उन्हें एक बार याद करे,
वे दिल में याद उसे लाख बार करते हैं ।।
आज आपको हम बताने वाले हैं कि,
गायत्री महामंत्र और महामृत्युंजय महामंत्र की महिमा क्या है ।
गायत्री मंत्र से {मेमोरी-पावर} स्मृति ठीक होता है, बुद्धि में प्रकाश भर जाता है ।
जो आप एकबार सुन लेते हैं, वह- भूलता नहीं, पात्रता विकसित हो जाती है, किसी भी चीज को याद रखने के लिए ।।
गायत्री मंत्र का अधिक से अधिक जप और ध्यान करें ।।
यह मंत्र आध्यात्मिक मंत्र है, मन सॉफ्टवेयर है गायत्रीमंत्र मन को ठीक करता है, क्योंकि गायत्री, सूर्य की उष्मा है, जो दिखाई नहीं पड़ता । सूक्ष्म और भौतिक दोनों जगत् को ऊर्जा प्रदान करता है ।।
और
सावित्री माने होता है भौतिक जगत ।।
जो भौतिक जगत में— भौतिकता को प्राप्त करने के लिए सबसे पहले शरीर के स्वस्थता प्रदान करता है ।। स्वस्थ शरीर हमें मिले और आजीवन हम युवा रहे उसके लिए—
महामृत्युंजय मंत्र से बड़ा कोई मंत्र नहीं है ।
भौतिक जगत् !!
अर्थात्—
शरीर और सारी सुविधा-साधन की व्यवस्था । महामृत्य मृत्युंजय मंत्र ही है ।।
महामृत्युंजय मंत्र से लोग ज्यादा दिन जीने का मंत्र जानते हैं, ज्यादा दिन जीना तो तभी होता है जब हमारा शरीर स्वस्थ्य होता है, हमको समयानुसार उचित सुविधा प्राप्त होती है ।।
श्रावण मास चल रहा है—
इस मास में हृदय में श्रद्धा भक्ति विशेष रूपसे रहती है,
*श्रावण शुक्लपक्ष में ही, करपात्री जी की जयंती हरियालीतीज {श्रावणीतीज} नागपञ्चमी कल्कीजयंती, शीतलासप्तमी, गोस्वामी तुलसीदासजी की जयंती पुत्रदा एकादशी, तथा रक्षाबंधन का पुनीतपर्व इन्हीं 15 दिनों में होता है ।
और इसी के एक माह के बाद ही, पितृपक्ष भी आता है, इससे हमे बहुत ही श्रद्धा के साथ गायत्री मंत्र का जाप और महामृत्युंजय मंत्र जाप दोनों महामंत्रों का जाप करना चाहिए ।।
*पहले गायत्री महामंत्रका कम से कम तीन माला जाप करें ।*
और —
महामृत्युंजय मंत्र का एक माला जाप करें ।
यदि लघु मृत्युंजय का मंत्र का जाप कर रहे हैं तो–
पांच माला का जाप करें ।
जप करने के बाद कहें–
हे मां गायत्री !! हमारा जप स्वीकार करो, हमारा कल्याण करो, हमारा मार्गदर्शन करो ।।
इसी भांति जब– महामृत्युंजय मंत्र का जाप पूरा हो तो, भगवान शिव से कहें, हे भगवान शिव !! हमारा कल्याण करें, हमारा परिचालन करें, हमारा मार्गदर्शन करें ।।
विशेष ध्यान रहे– आपके गुरुजी ने जो मंत्र आपको बताया है, उस गुरु मंत्र का जाप करने के बाद—
गायत्री महामंत्र एवं महामृत्युंजय मंत्रों का जाप करना चाहिए ।।
हरिकृपा ।।
मंगल कामना ।।