
मिला बहुत कुछ..
कुछ मुझ में रह गया,
बिसर कुछ गया।
पाया बहुत कुछ,
जीवन से,
कुछ मुझ में रह गया,
बिसर कुछ गया।
कुछ नगमे,
कुछ गीत गुनगुनाए,
कुछ याद रहे,
बिसर कुछ गए।
जग से मिला प्रेम सागर सा,
कुछ जो मुझ में रह गया,
संबल नदिया सा बन गया,
दुर्दिन में रूप,
संजीवनी सा संवर गया।
जग का अर्पित,
जग को हुआ,
कुछ जो मुझ में रह गया,
कलम में बस गया,
लेखनी अमर कर गया।
कुछ जो मुझ में रह गया,
कलम में बस गया ,
लेखनी अमर कर गया।।
संध्या दीक्षित