
दिनांक : 25 जुलाई , 2025
दिवा : शुक्रवार
मानव ऐसा तू प्राणी है ,
वाणी ही तेरा पाणि है ,
लिखते पढ़ते जुबानी हैं ,
तेरा वाणी ही कहानी है ।
वाणी का मोल समझो ,
वाणी है अनमोल समझो ,
वाणी स्वयं में परिपूरण ,
वाणी खाली खोल न समझो ।
संस्कृति जीवन की रानी है ,
किंतु मानव ये अभिमानी है ,
वाणी ही ज्ञानी अज्ञानी है ,
तेरी वाणी तेरी कहानी है ।
सृष्टि में जीवन पाया पावन ,
जीवन किया स्वयं अपावन ,
लोभ क्रोध ईर्ष्या पालकर ,
जीवन ये जीवन में नशावन ।
मानव करता मनमानी है ,
तू नादान या अभिमानी है ,
सोच सोचकर बढ़ा कदम ,
तेरी वाणी तेरी कहानी है ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )
बिहार