
रमा राघव की शुभ छाया में,
फूली कमल संगिनी काया में।
हैदराबाद की धरती से आई,
ज्ञान-विभा की जोत जगाई।
तेलंगाना की माटी पावन,
जिसमें पला साहित्य सावन।
प्रकाशन जब रमा राघव का हो,
हर अंक बने मन का मधुबन वो।
संपादक मंडल की मेहनत भारी,
हर रचना बने मोती की क्यारी।
विचारों की लहरें, भावों की धार,
रचते हैं जैसे कोई त्यौहार।
विजय कुमार की दृष्टि गहराई,
सुशील राठौड़ ने सृजन सजाई।
संपादन की थाली में सुगंधित व्यंजन,
जिन्हें पढ़ पाठक हों विभोर हर क्षण।
कवियों की लेखनी, शब्दों की लड़ी,
साहित्य की माला बन हर ओर गड़ी।
धन्य है मंडल, प्रकाशन परिवार,
जो रचते हैं संस्कृति का आधार।
जय हो उस संकल्प की जोत की,
जो हर अंक में दीप बनकर जलती।
कमल संगिनी यूँ ही फूले हर बार,
बने ज्ञान, सृजन और श्रद्धा का उपहार।
डॉ बीएल सैनी
श्रीमाधोपुर सीकर राजस्थान