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आज फिर कारगिल की याद मेंमेरे छोटे भाई की जबानी

कारगिल युद्ध की रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना मेरे परिवार के केन्द्र से भी जुड़ी है।

मेरे छोटे भाई जयप्रकाश ने कारगिल युद्ध के समय टाइगर हिल पर अपनी उपस्थिति और युद्ध की रोंगटे खड़े कर देने वाली जानकारी साझा करते हुए बताया था कि मेरे एक साथी जोगिंदर ने हिम्मत करके पाकिस्तान के सैनिकों के बराबर ऊँचाई पर जाकर, वहां की स्थिति की खबर नीचे दी थी। उसके सूचना देने से पहले भारतीय सैनिकों की वह टुकड़ी जो टाइगर हिल पर बैठे पाक सैनिकों को सप्लाई की चैन को तोड़ने के लिए लगाई गई थी। उस टुकड़ी के सभी सैनिक हताहत हो गये थे। यानी तीन व चार जुलाई 1999 की रात को टाइगर हिल को कब्जा में लेने के लिए किया गया हमला सफल न रहा था।

जोगिंदर के उस ऊँचाई पर पहुँचने के प्रयास में और पहाड़ी की चोटी पर, पाक सैनिकों की संख्या व उपस्थिति की सूचना अपने अधिकारियों को देने तक के समय में, उसके शरीर के दायें हिस्से में तीस गोलियां लग चुकी थी।

आपको याद होगा जोगिंदर को उसके इस साहसिक कार्य के लिए परमवीर चक्र मिला था।

मेरा छोटा भाई जयप्रकाश 18 ग्रेनेडियर रेजिमेंट में सेवारत था। उसने अपने तीन अन्य साथियों के साथ, शून्य से नीचे 5℃ तापमान पर भी साहस बनाये रखा। ऐसी ठण्ड में रात निकालना भारी पड़ता। छोटी सी लोहे की सिप्पी में कर्पूर की गोली को रखकर जलाते। इसी ऊर्जा से शरीर का तापमान बनाये रखने का प्रयत्न किया जाता।
इस बात की भी बेहद सतर्कता बरती जाती कि कर्पूर की गोली की रोशनी की एक भी किरण बाहर न जाये। छोटे से टैन्ट की परतों में ही बनी रहे। अन्यथा दूसरे ही क्षण पहाड़ी के ऊपर से दुश्मन की गोलियाँ शरीर को छलनी बना देने का भय साये की तरह साथ रहता।

छोटे भाई ने बताया कि हम तीन दिन तक भूखे रहकर, रात में टाइगर हिल की रेंगकर चढ़ाई चढ़ते रहे। दिन के समय किसी पत्थर के सहारे मृत की तरह, बिना हिले डुले, एक ही स्थान पर पड़े रहते थे। क्योंकि दुश्मन हमारे ऊपर था। दिन में एक छोटी सी हलचल होती थी तो दुश्मन तुरंत ट ट ट ट ट ठ ठ ठ गोलीबारी करता था। इस कारण हम दिनभर, भूखे प्यासे, किसी पत्थर की ओट में चट्टान का हिस्सा बने पड़े रहते थे। शरीर के हिलने का मतलब था मौत का बुलावा।

उस ऊँचाई पर जमी बर्फ ही प्यास बुझाने का एकमात्र उपाय था।
बर्फ बमबारी के कारण बारूद से लथपथ हो चुकी थी। हम अपनी प्यास बुझाने के लिए बर्फ को हथेली में लेकर, बारूद को नितेर लेते, फिर घूँट भर पानी पी लेते थे। कभी जल्दबाजी होती तो बारूद सहित बर्फ को चूस लेते थे।

ऐसी विषम स्थितियों में अपनी जी जान लगाकर हम चार साथियों ने दुश्मन को पछाड़ कर, टाईगर हिल को पाकिस्तानियों से वापस अपने कब्जे में कर, भारत का झण्डा फहराया था।आज भी उनके मुँह से कारगिल युद्ध की बारीकियाँ सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

मेरे देश के लिए और मेरे परिवार के लिए यह गर्व की बात है।

जाँबाजो तुम्हारी शहादत दिल में है और नाम होटों पर..।

कारगिल दिवस पर शहीदों को नमन !

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