
साझा संसार फाऊण्डेशन नीदरलैंड्स की पहल पर ‘गजल- दस्ता’ पुस्तक चर्चा, आयोजन ऑनलाइन संपन्न हुआ। यह ‘गजल दस्ता’ न्यूयॉर्क अमेरिका से अशोक सिंह द्वारा रचित ‘आरजू की शाख पर’, ‘खिल गया गुँचा कोई’ और सूरज कि चाँद कह कसाँ’ इन तीन पुस्तकों का सामूहिक शीर्षक है। इस आयोजन की अध्यक्षता बिश्केक, किर्गिज़स्तान में हेड ऑफ चाँसरी एवम् पूर्व कार्यकारी राजदूत श्री शिव मोहन सिंह ने की।
इस आयोजन में अमेरिका से विशाखा ठाकर तथा भारत से प्रज्ञा त्रिवेदी, प्रेमबिहारी मिश्र, एडमिरल खुर्रम नूर और रेणु हुसैन ने भाग लिया। अमेरिका से विनीता तिवारी ने सुंदर मंच संचालन किया।
अपने अध्यक्षीय भाषण में शिव मोहन सिंह ने कहा कि गजल विधा की यात्रा छः सौ वर्ष से भी अधिक पुरानी है। गजल का स्वरूप बदल रहा है। यह बदलाव एक नियति है। शायरी आदमी में सर्जनात्मक बदलाव लाती है। अशोक जी गजल के शिल्पकार हैं। उनकी गजलों में सौन्दर्य, विरह, प्रकृति के साथ साथ शब्द-चित्र और मानवीकरण देखते ही बनता है।
अशोक जी की कामयाबी का ताज उनकी सतत् साधना है। उनकी पुस्तकें गजल की पाठशाला हैं। भारत से दूर न्यूयॉर्क में रहते हुए हिंदी गजल को अशोक सिंह ने नयी दिशा दी है।
रामा तक्षक अध्यक्ष, साझा संसार फाऊण्डेशन नीदरलैंड्स ने अपने स्वागत वक्तव्य में साझा संसार की गतिविधियों की विस्तृत जानकारी दी और बताया कि गजल बहुत अद्भुत विधा है। गजल का सुनना, आपके पूर्ण समर्पण की माँग करता है। यदि एक शब्द भी सुनना चूके तो चूक हो गई।
विशाखा ठाकर ने बताया कि अशोक सिंह ने उर्दू व्याकरण का गहन अध्ययन किया है। उनके एहसास की बारीकी,
उर्दू का परिवेश न होते हुए भी उर्दू लफ्जों पर, उनकी बहुत सशक्त पकड़ है। वे न केवल स्वयं लिखते हैं, बल्कि दूसरों को भी प्रोत्साहित करते हैं। उनका अनवरत साप्ताहिक गजल आयोजन तीन सौ के आँकड़े की तरफ बढ़ रहा है।
रेणु हुसैन ने कहा कि ‘गजल – दस्ता’ में, गजल का सफर हिंदुस्तानी के शिखर को छू रहा है। अशोक सिंह ने गजल विधा के माध्यम से समाज के विभिन्न पहलुओं को उकेरा है। इसके अलावा उनकी रचनाओं में, जीवन-मृत्यु, आत्मा और परमात्मा तथा भारतीय दर्शन भी अनछुआ नहीं रहा है।
प्रज्ञा त्रिवेदी ने ‘गजल दस्ता’ की गजलों को अपनी सुरीली आवाज में सुनाकर, सबकी वाहवाही लूट ली।
एडमिरल खुर्रम नूर ने बताया कि अनुशासन, शालीनता और सभ्यता अशोक सिंह के व्यक्तित्व के स्तम्भ हैं। उनके लेखन में ‘मतला’ लिखने की विशिष्टता स्पष्ट दिखाई देती है। ‘मतला’ लिखने में उनका कोई सानी नहीं है। जबकि ‘मतला’ लिखना सबसे मुश्किल काम है।
प्रेम बिहारी मिश्र ने कहा कि अशोक सिंह का गजल रचना संसार बहुत सुंदर है। उन्होंने अपनी बात को तथ्यों के साथ विस्तार से बताया कि इनकी गजलों में गजल की रूह, दिल के जज्बात, काफियों की बहुतायत, तकनीकी खूबसूरती और भाषा पर पकड़ बहुत जबरदस्त है।
इस आयोजन में नरेन्द्र टंडन, प्रमुद रावत, राजेंद्र श्रोत्रिय, दिगम्बर नसवा, दुबई से कौसर भुट्टो आदि ने श्रोताओं के रूप में भाग लिया।