
तनाव होता सबको क्या आज
क्या इसका है कोई ठोस इलाज
जिससे पूछो यह बात तुम आज
कहता है बहुत तनाव में हूँ आज
व्यवहार उत्तरदाई है या समाज
होना स्वाभाविक है ऐसा आज
हो जाता आवेशित प्राणी आज
कच्चा है कानों का व्यक्ति आज
मन करता स्वयं अपना प्रलाप
उज्जवल हूं भर मन में संन्ताप
उपदेशक हूं जिम्मेदार हैं आप
उत्तरदायित्व से भागते हैं जनाब
ऐसा ना हो तो जरा मन से सोचों
क्या करना , इन्सान बनकर सोचों
एक ही दिन में सब कुछ मत करना
मिलकर सारे आधा- आधा रचना
विपरीत दिशा में मुश्किल वहना
दूसरों को काटते हुए नहीं रहना
आवेशों पर अस्तित्व नहीं चलना
सदा स्वच्छ समाज का ध्येय रखना
ऐसा हो ,हर एक जीवन का सपना
सब लोग बनाये सुन्दर मन अपना
ईर्ष्या, धमंड को त्याग कर चलना
डिप्रेशन डिस्टर्बेनस डिलीट करना
डॉ ,कृष्ण कान्त भट्ट
एस वी पी सी बैंगलुरू
स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित रचना