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आख़िरी पड़ाव

रूप बदल जाएंगे
रंग बदल जाएगा
तुम बदल जाओगी
तन बदल जाएगा
उम्र ढल जाएगी
चेहरा बदल जाएगा
तब भी तुम पुकारना मुझे
सामने ही पाओगी।

जब आँखें थकने लगें
जब साँसें छलने लगें
जब धड़कनें डराने लगें
जब बदन थरथराने लगे
जब पाँव डगमगाने लगें
जब यम दिखने लगे
जब वक़्त का आख़िरी पड़ाव हो—
तब पुकारना मुझे,
साथ खड़ा पाओगी।

जब न बचे कोई निशानी
तेरे अस्तित्व की
जब राख बन उड़ने लगो
हवा में तैरने लगो—
तब पुकारना,
उस राख में मुझे ही
सम्मिलित पाओगी।

मैं अब भी और तब भी
साँस के अंतिम क्षण तक
मौत मिटा न दे
अग्नि जला न दे—
तब तक मुझे पाओगी।
आर एस लॉस्टम
लखनऊ

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