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डॉ. ललिता जी से साक्षात्कार

नमस्कार, आपका स्वागत है। सबसे पहले अपना नाम, जन्मतिथि और जन्मस्थान बताइए।

डॉ. ललिता: मेरा नाम अणुव्रतसेवी प्रो. डॉ. ललिता बी. जोगड़ है। मेरा जन्म 28 जून 1957 को सातोना, महाराष्ट्र में हुआ।

बचपन में साहित्य और कविता में आपकी रुचि कैसे जगी?
डॉ. ललिता: बचपन में पत्रिकाओं और अखबारों में कविताएँ पढ़कर लगता था कि मैं भी लिखूँ, मेरा नाम आए, फोटो छपे, पुरस्कार मिले और सम्मान हो।

आपकी पहली कविता कब और किस विषय पर थी?
डॉ. ललिता: मैं लगभग 6–7 साल की थी, तब पहली कविता ‘बचपन’ पर लिखी थी।

आपकी कविताओं की मुख्य शैली क्या है?

डॉ. ललिता: सामाजिक, धार्मिक, नारी, शैक्षिक और राष्ट्रीय त्यौहार जैसे विषयों पर, जो भी मेरे अंतरमन में आता है, उस पर लिखती हूँ।

किन कवियों या लेखकों से आपको प्रेरणा मिली?

डॉ. ललिता: हिन्दी साहित्य जगत के पाँच रत्न—प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी वर्मा और तुलसी, बिहारी, कबीर जी से।

आपकी कविताओं के प्रमुख विषय कौन-कौन से हैं?
डॉ. ललिता: सामाजिक, धार्मिक, प्रकृति और मानवीय मूल्यों से जुड़े विषय।

आपके अनुसार एक सशक्त कविता की सबसे बड़ी विशेषता क्या होनी चाहिए?
डॉ. ललिता: कल्पना, विचार और तालमेल—ये तीनों मिलकर कविता बनाते हैं। कविता मन को झंकृत करे, चिंतन के लिए प्रेरित करे और आत्मिक शांति दे।

क्या आपकी रचनाएँ प्रमुख पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं?
डॉ. ललिता: हाँ, 40 से अधिक पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्रों और साझा संकलनों में।

क्या आपको पुरस्कार और सम्मान भी मिले हैं?
डॉ. ललिता: जी हाँ, 1350 से अधिक पुरस्कार और सम्मान, 27 गोल्ड मेडल, 1380 वर्ल्ड रिकॉर्ड और 6 संस्थाओं की ब्रांड एम्बेसडर बनी हूँ।

आज की कविता और पुराने युग की कविता में क्या अंतर है?
डॉ. ललिता: आज की कविता ज्यादा यथार्थवादी और मनोवैज्ञानिक है, जबकि पुरानी कविता अधिक पारंपरिक विषयों पर थी।

मंच पर कविता पाठ के कुछ अनुभव साझा करें।
डॉ. ललिता: ‘कन्या भ्रूण हत्या क्यों’ कविता सुनाने पर कई महिलाओं की आँखों में आँसू आ गए। उन्होंने कहा, “आपकी कविता दिल को छू जाती है।”

साहित्य सेवा में आपने क्या योगदान दिया है?
डॉ. ललिता: कविता पाठ, संपादन, पुस्तक अनुवाद, विशेष संकलन, सामाजिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन और 5500 से अधिक आयोजनों में भागीदारी।

क्या आप किसी साहित्यिक या सामाजिक संस्था से जुड़ी हैं?
डॉ. ललिता: जी हाँ, 47 संस्थाओं से 47 वर्षों से जुड़ी हूँ और अलग-अलग पदों पर कार्य किया है।

क्या आपको आलोचना का सामना भी करना पड़ा है?
डॉ. ललिता: हाँ, लेकिन मैं मानती हूँ कि आलोचना भी हमें सिखाती है। सही समय पर अपनी बात स्पष्ट करनी चाहिए।

युवाओं के लिए आपका संदेश?
डॉ. ललिता: सजग रहें, केवल भावनाओं में न बहें, समाज को लौटाने का प्रयास करें, व्यसन से दूर रहें और पर्यावरण का संरक्षण करें।

इस समय आप किस कार्य में सक्रिय हैं?
डॉ. ललिता: अप्रकाशित पुस्तकों का प्रकाशन, वृक्षारोपण, मेडिकल कैंप और अन्य सामाजिक कार्य।

आपके भविष्य के लक्ष्य क्या हैं?
डॉ. ललिता: अच्छे कार्य और साहित्य से लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाना।

नारी साहित्य की भूमिका पर आपका दृष्टिकोण?
डॉ. ललिता: महिलाओं ने साहित्य में अपनी कलम से समाज की सच्चाई को उजागर कर प्रभावशाली योगदान दिया है।

आपके नाम के आगे ‘अणुव्रतसेवी’ क्यों लिखा जाता है?
डॉ. ललिता: यह उपाधि मुझे मेरे गुरु आचार्य श्री महाश्रमण जी से मिली है। अणुव्रत के 11 नियमों का पालन जीवन को सरल और शांतिमय बनाता है।

इंटरव्यूअर: बहुत-बहुत धन्यवाद, डॉ. ललिता जी, आपका यह प्रेरणादायी सफर सभी के लिए मिसाल है।

धन्यवाद

डॉ गुंडाल विजय कुमार
संपादक
नव भारत वार्ता
डिजिटल समाचार पत्र

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