
वो रूठ गए कुछ बातों से,
खट्टी-मीठी हालातों से।
दिन के जल्दी ढल जाने से,
रात के खामोश रह जाने से।
सुबह की हल्की सुगबुगाहट से,
पक्षियों की मीठी किलकारियों से।
मन की अनकही उलझनों से,
यादों की चुभती तकरारियों से।
वक़्त के असहाय दुखों से,
अपनों की धोखाधड़ी से।
बिन कारण के तानों से,
हिस्से-बँटवारे के झाड़ों से।
लालच और लालचियों से,
सगे-संबंधियों की कठोरता से।
माँ-बाबूजी के एकतरफ़ा प्रेम से,
सामाजिक पाखंड और रचनाओं से।
अगड़े-पिछड़े की ऊँच-नीच से,
जाति-पाँति के उठाए रिवाज़ों से।
जब-जब टूटा उनका विश्वास,
वो रूठ गए कुछ बातों से…
आर एस लॉस्टम