
यह दुनिया!!
चार दिनों का मेला,
यहां मानुष अकेला।
सुख के सब साथी,
दुख निपट अकेला।
घी चुपड़ी रोटी के चार निवाले,
सब होते हैं खाने वाले।
रूखे-सूखे टिक्कड़ को,
नहीं मिलते हंस कर खाने वाले।
छिप कर आंसू बहाने वाले,
आ जा!!
हंस कर जी ले पल दो पल।
हंस कर जी ले पल दो पल।।
संध्या दीक्षित