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कमीज की बटन (व्यंग्य)


घटना बहुत पुरानी नही ,पर बात कुछ यूॅ हैं कि, मेरी नई नई जॉब लगी थी।सुबह ऑफिस जल्दी तैयार होकर जाना था। मैं भी कुछ अच्छा कर सकता हॅू, बॉस को ये बताना था।पर ये क्या ,जो कमीज मुझे पहनना थी, उसका एक बटन टूटा हुआ था।बड़ा अफसोस हुआ , पर ख्याल आया, बीबी ठीक कर दूंगी ,कह कर अपने माइके चली गई। मां को बोलने का मन नही हुआ।अब क्या करता जिस भगवान की पूजा में मां बैठी थी । उसे याद करते हुये वो कमीज पहन ली, क्योंकि कोई और कमीज पहनने लायक नही थी।
जैसे तैसे घर से निकल ऑटो में बैठ लोकल ट्रेन में पहुंचा ही था,शर्मा जी ने टोक दिया। ये क्या भाई साहब बटन तो लगा लो। मैनें अनुसनी कर उनकी बातों को, चुपचाप अपना सिर नीचे कर बैठा रहा फिर थोड़ी देर बाद ट्रेन से उतर ऑफिस जाने वाली सड़क पर खड़ा हुआ ही था कि पीछे से किसी ने आवाज दी कैसे हो भाई ? मैं कुछ बोलता, वो शख्स हाथ में मोबाइल ले आगे आये और बोले। कमीज की बटन तो लगा लो ,भाई ! अब अपन कॉलेज में नही पढ़ते । मैं उन्हे क्या बताता , बटन होता तो लगता। फिर मुझे महसूस हुआ कि ,रास्ते पे लोग अपने मोबाइल और मुझे ही बड़ी गौर से देख रहे थे सब कुछ भूल, ऑफिस पहुंचकर कुर्सी पर बैठा ही था।प्यून ने कहां ,साहब ने बुलाया हैं। मैं कैबिन में पहुंचा , बड़ा शोर था वहॉ टी.वी. पर एक लोकल न्यूज चल रही थी जिसे देख बॉस की टीम ठहाके मार हंस रही थी। गौर से देखो इस शख्स को । कोई बार बार जोर से कह रहा था। बॉस ने कहा, आओ जरा बैठो। इक मजेदार न्यूज देखो। टी.वी.देख लगा ये दुनियां कितनी आगे बढ़ गई ।
मुझे पता न लगा, मेरी कमीज की बटन कब बेक्रिग न्यूज बन गई।समाचार में मेरी कमीज की बटन को जूम कर तमाशा दिखाया जा रहा था जिसे बॉस भी मोबाइल पर ध्यान से देख रहा था।उस दिन अहसास हुआ कि काश पिताजी की बात मान, सिलाई सीख ली होती।
तो ये टूटी बटन मेरा चरित्र प्रमाण पत्र नही बनती।
नीरज कुमार (नीर)
कवि,कहानीकार,व्यंग्यकार

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