
संकल्प-विकल्पात्मकं मनः निश्चयात्मिका बुद्धि: अहंकर्ता – अहंकार , चिन्तनकर्तृ चित्तम् ।
मनसो देवता चन्द्रमा , बुद्धिर्ब्रह्मा , अहंकारस्य रुद्र , चित्तस्य वासुदेव: ।।
अनुवाद — एकही अंतःकरणके संकल्प, विकल्पसे मन,
निश्चयरूप से बुद्धि,
अहंभाव करने से अहंकार और
सतत् चिन्तन करने से चित्त नाम हुआ ।।
मन के देवता चन्द्रमा,
बुद्धि के देवता ब्रह्मा,
अहंकार के देवता रुद्र
और
चित्त के वासुदेव {विष्णु} हैं ।
व्याख्या — सृष्टि रचना के सर्वप्रथम प्रकृति व चेतन-ब्रह्म के संयोग से–
पाँच भूतों की उत्पत्ति हुई तथा इन पाँचों के संयुक्त-भाव के साथ चेतनशक्ति के कारण अंतःकरण का निर्माण हुआ,
जिसमें संकल्प-विकल्प के कारण उसे मन कहा गया,
संकल्प-विकल्प के कारण जो अनिश्चय होता है, उसका निश्चय करने वाली शक्ति का नाम बुद्धि है ।।
यह अंतःकरण निरन्तर चिन्तन करता रहता है, जिससे उसका नाम चित्त हुआ तथा यह अहंभाव वाला होंने से इसे अहंकार कहा गया है ।
ये चारों कार्य *एक ही अंतःकरण में होते हैं, किन्तु इनके कार्यों की भिन्नता के कारण ये चार नाम दिये गये हैं ।*
इन चारों का संचालन करने वाली चार शक्तियाँ हैं, जो इनके देवता कहे जाते हैं ।
मन के देवता चन्द्रमा,
बुद्धि के ब्रह्मा ,
चित्त के विष्णु तथा
अहंकार के रुद्र हैं ।
समष्टि में ये चार ही देवता {समष्टिके उक्त कार्योंका} संचालन करते हैं तथा ये ही शक्तियाँ —
शरीर में मन , बुद्धि , चित्त , अहंकार बनकर जीवन के कार्यों का संचालन करती हैं ।
ये समष्टिगत देवता ब्रह्मा , विष्णु , रुद्र व चन्द्रमा इन शक्तियों के प्रतीक हैं जो सृष्टि के संचालन का कार्य करते हैं ।
ये स्थूल शरीरधारी नहीं हैं ।।
हरिकृपा ।।
संकलन सम्पादन व प्रेषण—
पं. बलराम शरण शुक्ल
नवोदय नगर हरिद्वार