
बाधाएं तो आतीं हैं, औ
आगे भी आएंगी !
अविचल बढ़ो मार्ग पर अपने,
खुद ही मिट जाएंगी !!
विकट समस्याओं के सम्मुख,
तुम तनिक नहीं घबराना !
बुद्धि,विवेक,धैर्य, कौशल से,
तुमको निजात है पाना !!
विपदाओं के चक्रव्यूह से,
निकलोगे तुम कैसे !
आओ बतलाता हूं तुमको,
व्यूह रचो कुछ ऐसे !!
कठिन परिश्रम ज्ञानार्जन कर,
दूर करो तुम कमियां !
समय नहीं है पास तुम्हारे,
बीतन जाए घड़ियां!!
कृतकर्मों का कर अवलोकन,
पिछ्ली भूल सुधारो !
वर्तमान में ही भविष्य का,
सुदृढ नींव तुम डारो!!
आलोचक हों पास अगर तो,
भूल से बच जाओगे !
चाटुकार से दूर ही रहकर,
आगे बढ़ पाओगे !!
आगे अब अपने जीवन में,
ऐसे मित्र बनाना !
औषधी सम सलाह से उनके,
सुगम मार्ग अपनाना !!
“जिज्ञासु” की बात मानकर,
कुछ ऐसा तुम करना !
अमिट छाप छोड़ वसुधा पर,
कीर्तिमान नव गढ़ना!!
कमलेश विष्णु सिंह “जिज्ञासु”