
,एक स्पेशल चाय,
चलो फिर हो ही जाए,
निर्जीवता को तज कर,
हो लिया जीवंत ही जाए।।
सांवरी की नखरे देखे
वश मे किए ही कैसे,
मुराद इसके आशिक
जीते है गम मे जाए।।
इक सेमिनार हो कोई,
या मेहमाननवाजी की रस्मे,
इस काली कलुवी से,
दो चार हो लिया ही जाए।।
है पैंतरे बाज ये वैसे
बहुत कुछ है वश मे ऐसे,
जब रूका हो काम सरकारी,
चाय पानी फिर हो जाए।।
बढ़ती तब फाइल ऐसे,
पहिये लगे हो जैसे,
तुम कहते रंग काली,
सफ़ेदी से रंग जमाए।।
सिरदर्द हो या फिर खाली,
बस चाय की हो इक प्याली
सरगोशियां सिफ्त की,
इसकी क्या ही बताए।।
तुम आना मुझसे मिलने,
बारिश के उस मौसम मे,
जब बात हो पकौड़ी की,
फिर चाय तो हो ही जाए।।
संदीप शर्मा सरल
देहरादून उत्तराखंड