भारतीय वीरांगनाओं और वीरों के बलिदानों को हमारी पीढ़ियों को बताना बहुत जरूरी है

– भारतीय राजदूत श्री कुमार तुहिन
साझा संसार फाऊंडेशन की पहल पर, भारतीय स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष में, ‘आजादी के गुमनाम सितारे : नीरा बलिदानी’ विषय पर ऑनलाइन आयोजन, नीदरलैंड्स में भारतीय राजदूत महामहिम श्री कुमार तुहिन की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। लोकप्रिय कवि श्री बलबीर सिंह ‘करुण’ मुख्य अतिथि और ‘नीरा आर्य’ फिल्म के निर्माता श्री तेजपाल धामा विशिष्ट अतिथि थे।
इस आयोजन में, नीदरलैंड्स से अश्विनी केगांवकर ‘रानी चेन्नम्मा’, आलोक शर्मा ने ‘सैनिक का माँ को पत्र’, महेश वल्लभ पाण्डेय ने ‘ललाट है प्रचण्ड है’ और खजुराहो भारत से डॉ राघव पाठक ने ‘देश की सलामती को अब, कलाम और हमीद चाहिए’ ऐसी देशभक्ति की कविताओं का पाठ कर, भाग लिया। इस मंच का सुंदर एवं सफल संचालन नीदरलैंड्स से विश्वास दुबे ने किया।
महामहिम राजदूत महोदय ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि आज के इस आयोजन के माध्यम से ‘वीरांगना नीरा’ की स्मृति, हर भारतीय को गर्व से भरेगी। ऐसे बलिदान हमें बताते हैं की स्वतंत्रता कितनी अनमोल है! नीरा ने देश धर्म का काम चुना। उनके घर की हवा में, देशभक्ति की सुगंध थी। भारतीय वीरांगनाओं और वीरों के बलिदानों की बातें, हमारी संस्कृति का ठोस हिस्सा हैं। हमें, इन बातों को हमारी आने वाली पीढ़ियों को बताना बहुत जरूरी है। देशभक्ति केवल युद्ध के दौरान ही नहीं बल्कि औपनिवेशिक बेड़ियों को तोड़कर, हमें हर क्षण, देश के जीवन को गौरवशाली, विकसित और देश की समृद्धि को निर्मित करने में लगाना है।
श्री बलबीर सिंह करुण ने ‘नीरा आर्य’ पर ‘नीरा बलिदानी’ शीर्षक से महाकाव्य की रचना की है। उन्होंने ‘मेरठ की धरा क्रांति धरा है’ कहते हुए, नीरा के जीवन पर विस्तार से बताया कि एक युवक ने नीरा को डूबते हुए बचाया था। जब नीरा को होश आया तो नीरा ने पूछा कि मैं कहाँ हूँ ? आप कौन हैं ? उस समय युवक ने अपना परिचय दिया कि मैं सुभाष चंद्र बोस हूँ। यह रक्षा बंधन का दिन था। नीरा ने कहा “मैं आपको राखी बाँधना चाहती हूँ।” सुभाष चन्द्र बोस ने राखी के लिए हाथ बढ़ाया तो नीरा ने अपने सिर से आठ दस बाल तोड़कर, सुभाष को राखी बाँधी थी। इस घटना के बाद यह रिश्ता आगे बढ़ा और वह आजाद हिंद फौज की पहली महिला गुप्तचर बनी।
नीरा के जीवन की घटना को आगे बढ़ाते हुए बलबीर सिंह करुण ने बताया कि नीरा का विवाह जय रंजन से हुआ था। विवाह के बाद नीरा को पता चला कि जय रंजन, जन रंजन आदि कई पहचान पत्र लिए था। वह अंग्रेजों का जासूस था। एक रात को अंधेरे में, जय रंजन ने सुभाष चन्द्र बोस पर गोली चलाई। यह गोली सुभाष चन्द्र बोस के रक्षक को लगी। नीरा भी उस समय पहरे पर थी। उसने बिना देर किए जय रंजन को गोली मार कर, ढ़ेर कर दिया था।
श्री तेजपाल धामा, साधु बन चुके नीरा के भाई बसंत कुमार के सम्पर्क में आये थे। बसंत कुमार की जानकारी के आधार पर, धामा युगल हैदराबाद में फूल बेचकर, जीवनयापन कर रही नीरा के अंतिम तीन बरसों में, सम्पर्क में रहे। नीरा का दाह संस्कार भी धामा युगल ने अपने खर्चे से किया था। सुधा धामा ने नीरा को नहलाते हुए पाया कि नीरा का एक स्तन के स्थान पर, केवल घाव का काला धब्बा भर है। नीरा ने पूछने पर बताया कि एक बार अंग्रेजों की पकड़ में आने पर, सुभाष चन्द्र बोस की जानकारी न दिये जाने के कारण, प्रताड़ना स्वरूप, झाड़ी काटने वाली कैंची से अंग्रेजों ने मेरा स्तन काट दिया था।
तेजपाल धामा ने अपने वक्तव्य में बताया कि उन्होंने अपने गाँव खेकड़ा में, सत्तर लाख रुपये लगाकर, नीरा स्मारक तथा पुस्तकालय बनवाया है। जो सभी शोधार्थियों के लिए खुला है। उन्होंने ‘नीरा आर्य’ फिल्म का निर्माण किया है। 15 अगस्त को इस फिल्म का वैश्विक प्रीमियर दिखाया जायेगा।
साझा संसार फाऊण्डेशन के अध्यक्ष रामा तक्षक ने आयोजन की शुरुआत में अपने स्वागत वक्तव्य में साझा संसार फाऊण्डेशन के बारे में जानकारी दी। साथ ही अपनी सेलुलर जेल अंडमान की यात्रा और स्वतंत्रता की महत्ता के बारे में बताया कि स्वतंत्रता अमूल्य है। यह अनगिनत बलिदानों की विरासत है। इसका पोषण और संरक्षण हम सबका दायित्व है।
विश्वास दुबे ने आयोजन के अंत में, सबके प्रति धन्यवाद ज्ञापित करते हुए, अटल बिहारी वाजपेयी की कविता ‘भारत जमीन का टुकड़ा नहीं, जीता जागता राष्ट्रपुरुष है’ का पाठ भी किया।