
जो शाम को कहना था
वो सुबह कैसे कहे
बीती रात की बात
ये लम्हे उसे कैसे कहे ।।
फूल बिखरे हुए हैं
जो , ख्वाबों के संग
उनकी महक की चाहत
ये पल उसे कैसे कहे।।
यादों को कुछ यकीन था
अपने आप पर
जीवन के इस दौर में
जो है खास उसे कैसे कहे।
काश मेरे दर्द का
एहसास उसको भी हो
दर्ज है हर पन्ने में
नाम उसका उसे कैसे कहे।।
गुलाल मिल गया
उनके चेहरे के रंग में
इस कदर ,
रूप प्रेम का प्रतिबिंब है
वो उसे कैसे कहे।।
दिए दिवाली के
अब नहीं है रोशन
उम्मीद है उन्हें दीप्ति से
ये बात वक्त
उसे कैसे कहे।।।
नीरज चौधरी “नीर”
इटारसी (म.प्र.)