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माटी से ही अपनी प्रीति है

माटी ही जीवन की रीत है,
माटी में खुशबू का रंग है,
माटी में हर सुख का संग है,
माटी से ही अपनी प्रीति है।

माटी ने तन को आकार दिया,
सांसों में जीवन संचार किया,
फूलों से जग सजाया है,
माटी से ही अपनी प्रीति है।

खेतों में लहराए हरियाली,
अन्न के भंडार भर डाले प्याली,
ऋण इसका कोई उतार न पाए,
माटी से ही अपनी प्रीति है।

धरती माँ की ममता इसमें,
मंदिर-दीप की गरिमा इसमें,
हर अनमोल खजाना इसमें,
माटी से ही अपनी प्रीति है।

हम इससे जन्मे, इसमें समाएँ,
जीवन के हर सत्य को पाएँ,
हृदय में इसका मान बसाएँ,
माटी से ही अपनी प्रीति है।

योगेश गहतोड़ी

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