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“प्रेम” – कृष्ण जन्माष्टमी विशेष

जन्माष्टमी की रात गोकुल महकाया,
नंद के आँगन में यशोदा ने लाल पाया।
प्रेम से भरा हर कोना, हर मन मुस्काया,
कान्हा की लीला ने सबका दिल छू लिया।

प्रेम वह ममता है, जो नंद बाबा ने पाया,
लाड़-प्यार से कान्हा को गले लगाया।
पिता के हृदय में है भगवान का निवास,
संतान में श्रीकृष्ण दर्शन का प्रकाश।

प्रेम वह बांसुरी है, जो कान्हा जी बजाएँ,
मधुर सुरों से मन के आँगन में फूल खिलाएँ।
राधा हर पल बस उनका नाम सुनाएँ,
वृंदावन की गलियों में नित प्रेम-गीत गाएँ।

नित गोपियों के मन में जो मधुर रस घोले,
माखन-सी मुस्कान से हर दिल को तोले।
नटखट बालक में भगवान की छवि पाएँ,
हर अदा में उनकी लीला झलक दिखाएँ।

प्रेम वह खेल है, जो रास में रंग जमाए,
चाँदनी रात में गोपियों संग नृत्य रचाए।
घुँघरू की झंकार में सुर-लहरी बस जाए,
नयनों में कान्हा की छवि सदा मुस्काए।

प्रेम वह साहस है, जो गिरिराज उठाए,
ग्वालों-गोपियों को हर संकट से बचाए।
एक उँगली से पहाड़ थामे वह प्यारे,
भक्त-भरोसे में बँध जाते ईश्वर हमारे।

प्रेम वह विनय है, जो मित्रता में आए,
सुदामा की सादगी में सुख छा जाए।
चावल की मुट्ठी में अपार धन पाए,
मित्र के हृदय को अपना बना जाए।

प्रेम वह तप है, जो राधा में समाया,
हर श्वास, हर दृष्टि में कान्हा ही पाया।
आत्मा-परमात्मा का संग पवित्र हो,
प्रेम ही जीवन का असली चित्र हो।

प्रेम वह सत्य है, जो सदा अमर रहता,
हर कथा-भजन में फूल-सा महकता।
जन्माष्टमी पर यही दुआ हम सब लाएँ,
हर दिल में नित कान्हा का प्रेम जगाएँ।

योगेश गहतोड़ी

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