
श्रीकृष्ण भारतीय संस्कृति के परम आराध्य, परम शक्तिशाली और विचारशील युग पुरुष हैं। समस्त भारतीय जनमानस उनके सुंदर व्यक्तित्व का प्रशंसक है। आज उनके जन्मदिवस के अवसर पर प्रस्तुत है एक दृष्टान्त *****
महाभारत युद्ध के बाद पाण्डव अपना राज्य प्राप्त कर एक दिव्य सभा -भवन में आनन्द के साथ रहने लगे। एक दिन स्वेच्छापूर्वक घूमते हुए श्रीकृष्ण के साथ अर्जुन सभामण्डप के स्वर्ग के समान सुन्दर स्थान पर पहुँचे, प्रसन्नता के अतिरेक में उन्होंने कहा- ' देवकीनन्दन ! युद्ध के अवसर पर मैं आपके माहात्म्य और ईश्वरीय स्वरूप से परिचित हुआ था, परन्तु बुद्धि के दोष से वह सब इस समय भूल गया है। उन सब विषयों को सुनने की तीव्र इच्छा होती है। अतः वह सब विषय पुनः सुना दीजिये।'
श्रीकृष्ण बोले- अर्जुन ! उस समय मैंने तुम्हें अत्यन्त गोपनीय विषय के अन्तर्गत अपने स्वरूपभूत धर्म- सनातन पुरुषोत्तमतत्व और शुक्ल- कृष्ण गति के साथ नित्य लोकों का भी वर्णन किया था। किन्तु अपनी नासमझी से तुम उसे भूल गये, अब मेरे लिए उसे बताना कठिन है क्योंकि उस समय मैंने योगयुक्त होकर परमात्मतत्व का वर्णन किया था। अब उस विषय का ज्ञान इस प्रकार देता हूँ।
एक बार एक दुर्धर्ष ब्राह्मण ब्रह्मलोक से उतरकर मेरे यहाँ आये। मैने उनका आतिथ्य सत्कार किया और मोक्ष धर्म के विषय में प्रश्न किया, उन्होंने उसका उत्तर इस प्रकार दिया।
ब्राह्मण ने कहा- मधुसूदन ! मनुष्य अच्छे कर्म करके केवल पुण्य के संयोग से इस लोक में उत्तम फल और देवलोक में स्थान प्राप्त करते हैं। मनुष्य को कहीं भी सुख नहीं मिलता है, बड़े प्रयत्न कर, बड़ा स्थान प्राप्त कर भी हमें नीचे आना ही पड़ता है। अतः परमात्मा की शरण में ही सारा सुख प्राप्त होता है। श्रीकृष्ण कहते हैं - हे अर्जुन ! उन ब्राह्मण ने मुझे जीव की मृत्यु और उसकी गति, जीव के गर्भ प्रवेश, आचार - विचार, धर्म, कर्मफल की अनिवार्यता, संसार से तरने और मोक्षप्राप्ति के उपाय का वर्णन किया। मोक्ष धर्म का आश्रय लेने वाले वह मुनि यह प्रसंग सुना कर अन्तर्ध्यान हो गये।
पार्थ ! यह मैंने देवतागणों के लिए भी परम शिव गोपनीय रहस्य बतलाया है। इस सम्पूर्ण संसार में कभी भी किसी मनुष्य ने इस रहस्य को नहीं जाना है। तुम्हारे सिवा कोई अन्य मनुष्य इसको सुनने का अधिकारी भी नहीं है।
संध्या दीक्षित