
सुख कर्ता, दुख हर्ता, गणपति ,विघ्न हर्ता,
आया शरण तिहारी , सुन ओ विघ्न हर्ता।।
रिद्धि सिद्धि के स्वामी,तुम बुद्धि वाले,
करते निर्मल मन चित्त, चित्त के रखवाले।।
आमोद-प्रमोद पुत्र ,तुम्हारे है भजते,
जो कोई उनको भजते,सुखी उनको करते।।
आनंद, सानंद, मूषक, तुम्हरी है सवारी ,
जो भी कोई पूजे,उनको दिए तारी।।
जब जब बुद्धि कौशल ,परखे ,है जाते,
तब तब नाम सिमर को ,तुम है चले आते।।
वेदो को समझ कर, वेदी कहलाए,
वेदव्यास के प्यारे ,भागवत लिख आए।।
कथा तिहारी जन्म की ,अति है जी भाती,
रचती माँ उमा शिव को, पता न चल पाती।।
अनजाने मे युद्ध, पिता और पुत्र हुआ ,
भावावेश मे आकर सिर धड़ जुदा हुआ।।
कहते यह सब था,शनि प्रकोप रहा,
ऐरावत का शीश ,सुशोभित तब था रहा।।
क्या क्या गुण गुणगान, तुम्हारे मैं गाऊँ,
बस है इक श्रध्दा ही ,भेंट जो ले आऊँ।।
संदीप शर्मा सरल
देहरादून उत्तराखंड