
कहानी
बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गांव में ऋषि वशिष्ठ रहते थे। वह अपने गहन ज्ञान और करुणा के लिए प्रसिद्ध थे। उनके पास अनेक शिष्य शिक्षा लेने आते थे। गांव के सभी लोग उनको गुरु जी के नाम से पुकारते थे।
उन शिष्यों में एक अरुण नाम का युवक था। अरुण बहुत जिज्ञासु था। एक दिन उसने गुरु जी से पूछा –
गुरुदेव,
यह संसार द्वैत से भरा हुआ क्यों है?
हर चीज़ का उल्टा क्यों है?
सुख के साथ दुःख क्यों?
जीवन के साथ मृत्यु क्यों?
प्रेम के साथ घृणा क्यों?
प्रकाश के साथ अंधकार क्यों?
गुरु वशिष्ठ शांत मुस्कान के साथ बोले – “पुत्र, आज मैं तुम्हें द्वैत का रहस्य समझाऊँगा।”
गुरु जी, अरुण को अपने कमरे में ले गए। वहाँ एक बड़ा चमकदार आईना रखा था। उन्होंने कहा – “अरुण, इसमें देखो और बताओ, तुम्हें क्या दिखाई देता है।”
अरुण ने उत्तर दिया – “गुरुदेव, इसमें मुझे अपना चेहरा दिख रहा है।”
गुरु जी ने पूछा – “अगर यह आईना न होता तो क्या तुम अपना चेहरा देख पाते?”
अरुण बोला – “नहीं, गुरुदेव।”
गुरु जी ने कहा – “यही है द्वैत। जैसे आईना तुम्हें तुम्हारा रूप दिखाता है, वैसे ही दुःख तुम्हें सुख का महत्व सिखाता है। अंधकार न हो तो प्रकाश की महत्ता कौन जाने? घृणा न हो तो प्रेम का महत्व कौन समझता? भूख न हो तो अन्न का स्वाद कैसे समझे? हार न हो तो जीत का आनंद कौन ले?”
गुरु जी ने आगे समझाया – “पुत्र, द्वैत विरोधी नहीं, बल्कि पूरक है। यह जीवन को संतुलित करता है। दिन और रात, गर्मी और सर्दी, स्त्री और पुरुष – सब द्वैत के उदाहरण हैं। अगर केवल एक ही पहलू होता तो संसार अधूरा रह जाता।”
अरुण ध्यान से सुन रहा था। अब वह समझ चुका था कि द्वैत कोई बाधा नहीं, बल्कि जीवन का शिक्षक है।
अरुण ने गुरु के चरणों में सिर रखकर कहा – “गुरुदेव, अब मैं समझ गया। द्वैत बिना जीवन अधूरा है। द्वैत हमें अनुभव कराता है। द्वैत हमें सिखाता है कि हर स्थिति का अपना महत्व है।”
गुरु जी प्रसन्न होकर बोले – “यही जीवन का सार है, अरुण। संसार का द्वैत तुम्हें अनुभव देगा और यही अनुभव तुम्हें जीवन का सही मार्ग दिखाएगा।”
अरुण ने नतमस्तक होकर गुरु जी को बोला:
गुरुदेव,
- द्वैत जीवन का शिक्षक है।
- द्वैत हमें सुख-दुःख, जीत-हार, प्रकाश-अंधकार के माध्यम से अनुभव कराता है।
- द्वैत संसार का संतुलन है, जो जीवन को पूर्ण बनाता है।
योगेश गहतोड़ी