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सिमटते दायरे


जिंदगी में दायरे जब
सिमटने लगते हैं, हम
बहुत अकेला महसूस करने लगते हैं।
वैसे होते तो सब है साथ,
इस “अपनों” की भीड़ में भी
हम अजनबी और अकेले लगने लगते हैं।
तब व्यस्त होते हैं सभी
अपने-अपने दैनंदिन कार्यों में,
हम अपने लिए एक
निभृत कोना क्यों चुन लेते हैं??
अपने वजूद के इर्द-गिर्द
एक कांच की दीवार चुन लेते हैं,
जिससे हमारे अंदर तक कोई पहुंच ना पाए।
दुनिया सिर्फ हमारा हंसता चेहरा देख पाए।
क्योंकि जब दायरे सिमटने लगते हैं,
हम खुश रहने से अधिक,
खुश दिखने लगते हैं!!!
जब दायरे सिमटने लगते हैं!!

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