Uncategorized
Trending

तत्वचतुष्टयी (अद्वैत, द्वैत, त्रैत, चतुष्तैत)

(1)
अद्वैत कहे – मैं ही सत्य, सबका एक ही सार।
द्वैत लाया प्रेम मधुर, भक्त-भगवान का प्यार।
त्रैत रचाता है सृष्टि-पथ, चतुष्तैत धर्म प्रधान।
चारों मिलकर बनी यहाँ, तत्वचतुष्टयी महान॥

अद्वैत (एकत्व का भाव)
(2)
अंतर-बाह्य मिट गए, रह गया एक प्रकाश।
जीव-ब्रह्म सब एक हैं, अद्वैत का ही वास।
लहर न जाने सागर से, बूँद न जाने भेद।
एकत्व की अनुभूति में, मिट गए सब खेद॥

(3)
आँख खुली हों या बंद, दिखे वही प्रमाण।
सत्य अखण्ड है शाश्वत, नश्वर जगत निशान।
जग के दृश्य मरीचिका, सच्चा केवल धाम।
अद्वैत में ही मिल गया, आत्मा को विश्राम॥

द्वैत (भक्त और ईश्वर का भाव)
(4)
जीव अलग, ईश्वर अलग, मधुर बने संवाद।
सेवक-स्वामी भाव से, भक्ति मिले प्रसाद।
प्रेम-पथ पर जुड़ गया, भक्त और भगवान।
द्वैत-पथ पर चल पड़ा, जीवन का अभियान॥

(5)
प्रेम-सुधा से भीगकर, हृदय हुआ पावन।
ईश्वर-भक्त समीप हों, सुख से भरे जीवन।
अहं तिरोहित हो गया, शेष रहा विश्वास।
द्वैत में ही मिल गया, अनन्य प्रेम-विलास॥

त्रैत (त्रिगुण और त्रिमूर्ति का भाव)
(6)
सत्त्व शांति का दीप है, रज गति का प्रवाह।
तम अज्ञान का जाल बन, चलता जीवन-राह।
तीनों गुण जब संग हुए, सृष्टि हुई विशाल।
त्रैत से ही पनपा जग, जीवन हुआ खुशहाल॥

(7)
ब्रह्मा सृष्टि रचते हैं, विष्णु धरा सँभाल।
शिव संहार करें सदा, बदलें जग का हाल।
जन्म-मरण का खेल सब, त्रैत में है समाया।
त्रिमूर्ति के बल से ही, जग ने रूप पाया॥

चतुष्तैत (चार पुरुषार्थ का भाव)
(8)
धर्म दिखाए सही राह, अर्थ दे सफलता।
काम बढ़ाए सुख-भाव, जीवन में सरलता।
मोक्ष दिलाए मुक्ति फिर, शांति का प्रकाश।
चतुष्तैत से पूर्ण हुआ, जीवन का विकास॥

(9)
चार स्तंभ हैं जीवन के, देते नित सच्ची राह।
धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष से, जीवन पाए चाह।
इस लोक और परलोक में, मिलता सुख-संतोष।
चतुष्तैत की साधना से, जग में फैले प्रकाश॥

तत्वचतुष्टयी की महिमा
(10)
चारों मिलकर बने यहाँ, सत्य का उजियार।
ज्ञान और अनुभव से, खुला मुक्ति-द्वार।
जीवन-पथ जब चमक उठा, मिटे सब अज्ञान।
तत्वचतुष्टयी यही कहे, मोक्ष-पथ का ज्ञान॥

(11)
चारों आयामों में समाया, जीवन का विस्तार।
अद्वैत-द्वैत और त्रैत सहित, चतुष्तैत आधार।
एक ही सत्य समेटकर, रूप अनेक दिखाय।
तत्वचतुष्टयी यही बनी, ज्ञान-ज्योति जगाय॥

(12)
साधक जब यह जान ले, आत्मा का निज तत्त्व।
संसार और परमधाम, दिखें उसे समरूप।
पूर्ण चक्र बन जाए तब, साधना का सार।
तत्वचतुष्टयी यही बने, मोक्ष-पथ का द्वार॥

योगेश गहतोड़ी

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *