
समय तो अनंत काल से अनंत यात्री है। इस यात्रा के असंख्य चरण बीत चुके हैं। सतयुग, द्वापर, त्रेता और कलयुग के सहस्त्रों वर्षों की यात्रा इस के अंतर्गत ही आती है। हम सभी इसके साथ इस यात्रा के सहभागी हैं। इसमें एक पल के विश्राम की भी संभावना नहीं है। काल चक्र की गणना के हिसाब से रात का समय मनुष्यों की विश्रांति का समय है। परन्तु सदैव गतिशील कालचक्र कभी नहीं थमता है। उसकी गतिशीलता पर ही ऋतुएं, मौसम और शस्य श्यामला धरती पनपती है। जो मनुज अकारण असमय सोते हैं उनकी धरोहर उनकी वैचारिक संपदा, उनके सपने भी सदा के लिए सो जाते हैं। समय की यात्रा के सहभागी और सहयात्री बनने से ही हम अनेकानेक और असंख्य उपलब्धियों के साक्षी बनते हैं। यहां पर ध्यान रखने योग्य बात यह है कि हम उन्नति चाहने वाले मनुष्यों को सदैव सजग योगनिद्रा का अभ्यास करना चाहिए।
संध्या दीक्षित