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पहली कविता: श्रीमद्भगवद्गीता

कविवर सुमित्रा नंदन पन्त के अनुसार:-

वियोगी होगा पहला कवि,
आह से उपजा होगा गान,
निकल कर आँखों से चुपचाप,
बही होगी कविता अनजान।

कविवर सुमित्रानंदन पंत जी की अनुभूति के अनुसार यह लाइनें हमें यही बताती हैं कि कविता का जन्म वियोग या विरह की आह के बीच हुआ होगा।

अब जरा इन्ही लाइनों को अन्य तथ्यात्मक रूप के साथ भी देखें कि:-

योद्धा होगा पहला कवि,
युद्ध से निकला होगा गान,
निकल कर रणक्षेत्र से खुलेआम,
बनी होगी एक कविता महान।

परन्तु इस तथ्य पर भी विचार करना कविता के इतिहास और उद्भव या उद्गम के साथ न्याय करना समीचीन व उचित कहलाएगा कि सृष्टि का पहला महाकाव्य तो श्रीमदभगवदगीता है जिसे युद्ध के मैदान में 18 अध्यायों के करीब 700 श्लोकों में रचा गया ।
इस तथ्य के अनुसार तो स्वयं भगवान श्रीकृष्ण पहले कवि थे और पहला काव्य-पाठ (कवि सम्मेलन) मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को कुरुक्षेत्र के रणाँगन में महाभारत युद्ध के समय में आयोजित हुआ था जिसमे कवि श्री कृष्ण ने सस्वर काव्य पाठ किया था। यद्यपि वह इस कवि सम्मेलन के अकेले कवि थे परंतु उनके साथ ही उनके सखा अर्जुन उन्हें संचालन में सहायक थे।

इतना ही नहीं, रणक्षेत्र में आयोजित इस कवि सम्मेलन में पाण्डवों की सात अक्षौहिणी और कौरवों की ग्यारह अक्षौहिणी यानी कुल अठारह अक्षौहिणी सेना और तमाम रथी व महारथी योद्धा महापुरुष श्रोता के रूप में मौजूद थे, साथ ही रणक्षेत्र से सुदूर स्थित राजमहल से सीधा प्रसारण (लाइव टेलीकास्ट) होने वाले पहले कवि सम्मेलन का दर्जा भी इसी को प्राप्त है।जिसमें संजय एक प्रसारक (ब्रॉडकास्टर) के तौर पर इसे राजमहल तक सीधे प्रसारित कर रहे थे और महाराज धृतराष्ट्र राजमहल में श्रोता के रूप में उपस्थित थे।

कविवर सुमित्रानंदन पंत जी को ससम्मान सादर प्रणाम के साथ उपरोक्त तथ्यों के आधार पर याद रखिये कि कविता वियोगी मन की उपज हो सकती है और आह के भाव से उसका जन्म हुआ हो सकता है परंतु आदि कविता यानी पहली कविता आदि क्रांति के रूप में कुरुक्षेत्र की जमीन पर महाभारत में भगवद्गीता के रूप में उपजी जो प्रमाण सहित मौजूद है।

अतः कविता वियोग, विरह व आह, व किसी की बेचारगी से जन्मी हो सकती है, परंतु सृष्टि की पहली कविता कर्म, ध्यान, योग दर्शन के साथ जीवन में हम को आपको सत्य, उचित और न्याय के लिए धर्म सम्मत युद्ध करने का संदेश देती श्रीमद्भगवदगीता ही है।

डा. कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’, ‘विद्या वाचस्पति’
लखनऊ

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