
जय गणेश गणपति स्वामी हे
सब जन विघ्न हरो
आया हूं मैं शरण तुम्हारे
निर्मल चित्त करो
हे गणपति!
स्नेह सुगंध भरो।
चंचल मति यह स्थिरांक हो
इसमें वास करो
रिद्धि- सिद्धि के दाता स्वामी
सब संताप हरो
हे गणपति!
स्नेह सुगंध भरो।
‘जिज्ञासु’ सत् पथ अनुगामी
विषय विकार न घेरे स्वामी
सूधी जनों के हिये सुधा भर
मार्ग प्रसस्त करो
हे गणपति!
स्नेह सुगंध भरो।
कमलेश विष्णु सिंह “जिज्ञासु”