
- लीलाधर मंडलोई
विश्वरंग, हालैण्ड से साझा संसार फाऊण्डेशन, वनमाली सृजनपीठ व प्रवासी भारतीय साहित्य शोध केंद्र के ‘साहित्य का विश्वरंग’ का आयोजन हाल ही में, ऑनलाइन सम्पन्न हुआ। इस आयोजन में, जर्मनी से दीपा दिनेशनील, अमेरिका से मंजु श्रीवास्तव ‘मन’, साऊदी अरब से आरती पारीख, रूस से तत्याना ओरान्स्कया, भारत से भालचन्द्र जोशी ने भाग लिया। नीदरलैंड्स से अश्विनी केगांवकर ने इस आयोजन का सुन्दर संचालन किया।
श्री लीलाधर मंडलोई ने कहा कि साझा संसार, विश्वरंग, वनमाली सृजनपीठ के साहित्य का विश्वरंग आयोजन ने पिछले वर्षों में इतिहास रचा है। इस आयोजन के मंच पर रचनाकारों को बनते हुए देखा है। अब समय है कि ‘साहित्य का विश्वरंग’ आयोजन के प्रतिभागियों का दस्तावेज बनना चाहिए। मंडलोई जी ने प्रतिभागियों की रचनाओं पर समीक्षात्मक प्रकाश डालते हुए और रचनात्मक गुणवत्ता को सराहते हुए कहा कि आज कथेतर गद्य की विधाओं में बहुत सुंदर वृतांत सुनाए गये। उन्होंने ‘धरती के जख्म’ और ‘ राग सतपुड़ा’ रचनाएँ भी सुनाई।
आयोजक व साझा संसार फाउण्डेशन के अध्यक्ष रामा तक्षक ने अपने स्वागत वक्तव्य में, सभी प्रतिभागियों और श्रोताओं का स्वागत करते हुए बताया कि ‘साहित्य का विश्वरंग’ आयोजन का प्रयास भारतीय प्रवासियों की धरती से जुड़े जीवन और जगत की संस्कृति को भारतीय पाठकों तक पहुँचाना है।
मंजु श्रीवास्तव ने ‘यूरे गुफाएँ” शीर्षक संस्मरण, आरती पारीख ने ‘खोबर, दम्माम और देहरान शहरनामा’, तत्याना ओरान्स्कया ने रूसी कवि पुश्किन की रचना ‘पतझड़’ दीपा दिनेशनील ने ‘ओलम्पियाड गाँव बर्लिन’ और भालचंद्र जोशी ने ‘शहर’ का रोचक संस्मरण सुनाया।
ब्रिटेन से दिव्या माथुर सहित बहुत से अन्य देशों से भी श्रोताओं ने इस आयोजन से जुड़कर, रचनापाठ का आनंद लिया।