
सूत्र– ७
प्रत्यक्षानुमानाऽगमा: प्रमाणानि ।
प्रत्यक्षानुमानागमाः= प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम– {ये तीन}, प्रमाणानि= प्रमाण हैं ।
अनुवाद– प्रत्यक्ष अनुमान और आगम भेद के अनुसार प्रमाण वृत्ति तीन प्रकार की है ।
व्याख्या– प्रमाणों के आधार पर किसी वस्तु के सत्यासत्य का निर्माण करना चित्त की ‘प्रमाण-वृत्ति’ है । यह प्रमाण तीन प्रकार का होता है–
१. प्रत्यक्ष प्रमाण– जिन वस्तुओं का ज्ञान इंद्रियों की सहायता से होता है वह प्रत्यक्ष प्रमाण है । जैसे आंखों देखी, कानों सुनी, जिह्वा से स्वाद, नासिका से गन्ध तथा चमड़ी से स्पर्श का ज्ञान होना प्रत्यक्ष प्रमाण है । जब इसका भ्रम एवं संशय रहित ज्ञान होता है तो वह सत्य होता है ।।
२. अनुमान प्रमाण– जिन वस्तुओं का ज्ञान इंद्रियागत अनुभव के आधार पर न होकर अनुमान के आधार पर होता है उसे ‘अनुमान प्रमाण’ कहते हैं । जैसे धुएँ को देखकर अग्नि का अनुमान करना, बाढ़ आई देखकर दूसरे देश में अति-वृष्टि का अनुमान करना आदि ।
३. आगम प्रमाण– जो ज्ञान प्रत्यक्ष अथवा अनुमान और प्रमाणों के आधार पर नहीं होता किंतु विद्वानों तथा ज्ञानियों द्वारा कहे गए वचन तथा शास्त्र के वचन के आधार पर होता है वह भी प्रमाण है जिसे जिन्होंने प्रत्यक्ष देखा है । सभी व्यक्तियों को सभी प्रकार के अनुभव हो जाना अर्थात सभी वस्तुओं को प्रत्यक्ष देख पाना असम्भव है । इसलिए ज्ञानियों के कथन जो शास्त्रों में संग्रहित हैं ‘आगम प्रमाण’ कहते हैं । वेद, उपनिषद, दर्शन आदि उन मनीषियों द्वारा लिखे गए हैं जिनको वैसा अनुभव हुआ। इसलिए ये शास्त्र आगम प्रमाण हैं ।।
स्रोत– पतंजलि योग सूत्र
लेखन एवं प्रेषण—
पं. बलराम शरण शुक्ल
हरिद्वार