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राखी का त्योहार, भाग-3

रेशम धागा आज हुआ है,
ममता से ऐसा मजबूत।
प्रेम हृदय में बसा था भारी,
कर देता सबको अभिभूत।।

बहना की ये मृदुल कलाई,
भाई के मस्तक पर जाय।
करती तिलक, भाल दमकाती,
कर में दे राखी पहनाय।।

अपने हाथों से भाई को,
खिला रही मिष्ठान अपार।
दिया नारियल फिर भाई को,
भाई ने दी भेंट निकार।।

चरण छुए, बहना के सिर पर,
रख कर भाई ने उद्गार।
कहे, करुँ जीवन-भर रक्षा,
जब भी मुझको कहे पुकार।।

रचनाकार-
जुगल किशोर त्रिपाठी (साहित्यकार)
मऊरानीपुर, झाँसी (उ०प्र०)

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