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सेवा और त्याग की सार्थकता

“सच्ची और सम्मान के लिए पैसे की नहीं
बल्कि सेवा और त्याग की जरूरत होती है”
सेवा और त्याग, मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा गुण है जो अन्य प्राणियों से श्रेष्ठतम बनता है। सेवा मानवता की अद्भुत जीवन रेखा है। सेवा और त्याग का गुण ही समाज में किसी मनुष्य के
मूल्य अथवा उपयोगिता का निर्धारण करता है। ब्रह्मांड में सब कुछ सेवा और त्याग के सिद्धांत पर चलता है। सूर्य प्राण शक्ति देता है, बादल छाया देते हैं, और पृथ्वी जीवन देती है और यह सब बिना किसी स्वास्थ्य के।
सेवा और त्याग, यह दो महत्वपूर्ण गुण हैं जो मनुष्य को महान बनाते हैं। सेवा का अर्थ है दूसरों की मदद करना, जबकि त्याग का अर्थ है अपने सुखों और इच्छाओं को दूसरों के लिए छोड़ देना। यह दोनों गुण एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और इनका अभ्यास करके हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकते हैं।
*सेवा का मुख्य गुण निःस्वार्थता है।
सेवा करने वाला व्यक्ति अपने व्यक्तिगत लाभ या स्वार्थ को ध्यान में रखे बिना दूसरों की मदद करता है
*सेवा करने वाले व्यक्ति में दूसरों के प्रति सहानुभूति होती है। वह दूसरों के दर्द और तकलीफों को समझता है और उनकी मदद करने के लिए तत्पर रहता है। सेवा का उद्देश्य मानवता की सेवा करना है। सेवा करने वाला व्यक्ति सभी मनुष्य को समान रूप से देखता है और उनकी मदद करने में गर्व महसूस करता है।
*सेवा करने वाला व्यक्ति कर्मठ होता है ।
वह दूसरों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहता है और अपने काम को पूरी निष्ठा से करता है।
वही त्याग का भी मुख्य गुण निस्वार्थता है। त्याग करने वाला व्यक्ति अपने सुखों और इच्छाओं को दूसरों के लिए छोड़ देता है।
त्याग करने वाला व्यक्ति आत्म- संयमी होता है। वह अपनी इच्छाओं और भावनाओं पर नियंत्रण रखता है और सांसारिक सुखों से दूर रहता है।
त्याग करने वाला व्यक्ति धैर्यवान होता है। वह कठिनाइयों का सामना करता है और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दृढ़ रहता है।
त्याग का अर्थ किसी महान उद्देश्य के लिए खुद को समर्पित करना। क्या करने वाला व्यक्ति अपने जीवन को दूसरों के लिए समर्पित कर देता है।
सेवा और त्याग, दोनों ही मानव जीवन के महत्वपूर्ण पहलू हैं । ये गुण मनुष्य को महान बनाते हैं और समाज को बेहतर बनाने में मदद करते हैं। हमें इन गुणों को जीवन में उतारने का प्रयास करना चाहिए।
“बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आपका सेवा और त्याग भी बड़ा होना चाहिए”

डॉ मीना कुमारी परिहार

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