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सामयिक चर्चा

विक्रम संवत् २०८२ भाद्रपद शुक्लपक्ष पूर्णिमा अर्थात आने वाले 7 सितंबर 2025 से पितृपक्ष आरंभ हो रहा है—

पितृपक्ष तथा नवरात्र प्रत्येक वर्ष साथ-साथ होते हैं, शारदीय नवरात्र और पितृपक्ष- पच्चीस दिनोंकी साधनाका यह विशेष समय है ।

पितृपक्ष में पितरों को संतुष्ट करने वाला व्यक्ति जब तत्काल नवरात्रि में माँ की साधना अपने कुलदेवी की आराधना हेतु साधना के लिए अपने को समर्पित करता है तो जो अनुदान, वरदान माँ से प्राप्त होता है उसका मुख से वर्णन नहीं किया जा सकता ।

अतः शास्त्र की मर्यादा पर चलकर, सनातन की गरिमा को सुन्दर बनाते हुए अपने परिवार, समाज, एवं राष्ट्रको सुदृढ़ करें ।।

मनुष्य को पितृगणकी संतुष्टि तथा अपने कल्याण के लिए श्राद्ध अवश्य करना चाहिए ।
श्राद्धकर्ता केवल अपने पितरोंको ही तृप्त नहीं करता, बल्कि वह संपूर्ण जगत को सन्तुष्ट करता है ।

यो वा विधानतः श्राद्धं कुर्यात् स्वविभवोचितम् ।
आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं जगत् प्रीणाति मानवः ।।
ब्रह्मेन्द्ररुद्रनासत्यसूर्यानलसुमारुतान् ।
विश्वेदेवान् पितृगणान् पर्यग्निमनुजान् पशून् ।।
सरीसृपान् पितृगणान् यच्चान्यद्भूतसंज्ञितान् ।
श्राद्धं श्रद्धान्वितः कुर्वन् प्रीणयत्यखिलं जगत् ।।
{ब्रह्मपुराण}

जो मनुष्य अपने वैभव के अनुसार विधिपूर्वक श्राद्ध करता है वह साक्षात् ब्रह्मा से लेकर तृण पर्यंत समस्त प्राणियों को तृप्त करता है ।
श्रद्धापूर्वक विधि विधान से श्राद्ध करने वाला मनुष्य ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र, अश्वनीकुमार सूर्य, अग्नि, वायु, विश्वेदेव, पितृगण, मनुष्यगण, पशुगण, समस्त भूतगण, तथा सर्पगण को सन्तुष्ट करता हुआ सम्पूर्ण जगत् को सन्तुष्ट करता है ।

विष्णुपुराण में कहा है–
श्रद्धा युक्त होकर श्राद्ध कर्म करने से केवल पितृगण ही तृप्त नहीं होते बल्कि ब्रह्मा, इंद्र, दोनों अश्विनी कुमार, सूर्य, अग्नि, आठों वशु, वायु, विश्वेदेव, पितृगण, पक्षी, मनुष्य, पशु, सरीसृप और ऋषिगण आदि तथा अन्य समस्त भूत प्राणी तृप्त होते हैं ।
इस प्रकार गृहस्थ को चाहिए कि वह हव्यसे देवताओंका कव्यसे पितृगणोंका तथा अन्नसे अपने बन्धुओं का सत्कार तथा पूजन करे ।
श्रद्धा पूर्वक देव, पितृ और बान्धओंके पूजनसे मनुष्य लोक परलोक में पुष्टि, विपुल यश तथा उत्तम लोकों को प्राप्त करता है ।

यहां तक कहा है कि जो लोग देवता, ब्राह्मण, अग्नि और पितृगण की पूजा करते हैं, वे सबकी अंतरात्मा में रहनेवाले विष्णुकी ही पूजा करते हैं–

ये यजन्ति पितॄन् देवान् ब्राह्मणांश्च हुताशनान् ।
सर्वभूतान्तरात्मानं विष्णुमेव या यजन्ति ते ।।
{यमस्मृति}
स्रोत– अन्त्यकर्म श्राद्ध प्रकाश
गीताप्रेस गोरखपुर

पितृपक्षमें तर्पणकी विधि और नवरात्र साधना सम्बन्धी जानकारी, अगले लेख में…….

लेखन एवं प्रेषण–
पं. बलराम शरण शुक्ल हरिद्वार

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