
दिनांक 7 सितंबर 2025 दिन रविवार से पितृपक्ष, महालयारंभ हो रहा है ।।
पूरे पितृपक्ष में अपने पितरों को जल दान करें ।। पितरों को जल देने, उनका सम्मान करने से पितृ दोष समाप्त होता है ।।
जो लोग मंत्र सहित तर्पण नहीं कर सकते — साधारण रूप से तर्पण करने की जानकारी दी जा रही है—
पितरों के प्रसन्न करने से अनेकों दुखों का शमन होता है ।। इस समय पुरुषों को, पितृपक्ष आरंभ होने से पहले अपने सर के बाल उतरवा देना चाहिए ।।
अपने पितरों का नाम ले लेकर के जल प्रदान कर आशीष प्राप्त करें, जिससे आप अपने जीवन में अच्छी प्रगति कर सकें ।।
‘ क्योंकि पितृपक्ष में पितरलोक और पृथ्वी लोक एक दूसरे लोक के बहुत निकट आ जाते हैं ।।
, ऐसे समय में पितर लोग जब देखते हैं पृथ्वी की ओर तो, अपने कुल खानदान से, जल की अपेक्षा करते हैं तर्पण के लिए विशेष सामग्री जो तर्पण करते समय चाहिए वह है—
१~ जल
२~गंगाजल
३~ तुलसी का पत्ता
४~ देशी गौ का दूध
५~ सफेद चावल {धुलकर सुखाया हुआ}
६~ काला तिल {धुलकर सुखाया हुआ}
७~ जौ {धुलकर सुखाया हुआ}
८~ श्रीखंड चंदन {घिसकर लेप बनाया हुआ}
९~ सफेद फूल
१०~ शहद
यह सारा सामान एक-एक डिब्बे में सुरक्षित रख लें ।।
बैठने के लिए आसन ।
दो भगौना, जिसमें कम से कम तीन- तीन लीटर से अधिक पानी अंटे ।।
दो प्लेट सामने रखें
एक प्लेट में थोड़ा सा तिल जौ चावल सफेद फूल मीठा एक प्लेट में रखें ।। एक छोटे कटोरी में जल रखें ।
दोनों हाथ के अनामिका अंगुली में पैंती पहन लें । उसको हाथों में लेकर दोनों हाथों से जल प्रदान करें ।।
पैंती नहीं है तो अंगुलियों में अंगूठी पहनें ।
जो सामने खाली प्लेट है उसमें थोड़ा सा चावल हाथ में लेकर के पितरों का आवाहन करें ।
और उसमें जल अक्षत पुष्प धूप दीप और मीठा अर्पित करें ।
खाली प्लेट में रख दें । और पितरों से कहें हे पितृगण !! आप यह भोग स्वीकार करें ।।
अब जो १० प्रकार का समान लिखा हुआ है उसको एक भगौने में थोड़ा-थोड़ा रखें ।।
जिस भगवान में सामग्री रखे है उस भगौने को जल गंगाजल से भर दें ।।
अब आप अपने पिता माता
दादा-दादी
आजा आजी
तीन पीढ़ी को अपने {अंजुरी} अर्थात् अंजलि से एक-एक अंजलि जल खाली वाले भगौने में डालें
और कहें हे पिता यह जल स्वीकार करो हे माता यह जल स्वीकार करो ।।
अपने मामा के तीन पीढ़ी मामा मामी नाना नानी बूढ़े नाना नानी
इसी तरह आपकी मौसी मौसी, ससुर सास, मित्र, गुरु जितने भी लोग आपके जीवन में रहे हों और अब ना हों, उन्हें जल प्रदान करना चाहिए ।।
अंतिम में तीन अंजलि जल चराचर जगत के लिए अर्पित करना चाहिए
और एक अंजलि जल भीष्म पितामह के लिए अर्पित करना चाहिए ।।
अंतिम में वह जल किसी पौधे में डाल देना चाहिए
, जो पैर के नीचे ना पड़े ।।
हरिकृपा ।।
लेख– पं. बलराम शरण शुक्ल हरिद्वार