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हिन्दी वेदों की वाणी

हिन्दी वेदवाणी या, सत्यमार्गप्रदायिनी।
सा धारयति संस्कृतिं, जीवनं सौख्यमान्वितम्॥
(हिन्दी वेदों की वाणी है, जो सत्य का मार्ग दिखाने वाली है। वही हमारी संस्कृति को संजोए रखती है और जीवन को सुख-संपन्न बनाती है।)

हिमालय की गोद में उत्तराखण्ड राज्य के अल्मोड़ा जिले में स्यालदे बिनोली गाँव बसा है। यह गाँव बाँज, बुरांश और देवदार के वृक्षों से घिरा हुआ है। यहाँ के सीढ़ीनुमा खेतों में बरसात आते ही गाड़-गदेरों का निर्मल जल बह निकलता है। बसंत ऋतु में बुरांश के लाल फूल घर-घर रंग और सुगंध फैलाते हैं। गाँववासी झोड़ा-चांचरी गाकर त्योहार मनाते हैं और नंदा देवी के मेले में परिवार सहित भाग लेते हैं।

यह गाँव मेहनती लोगों के लिए प्रसिद्ध था, पर समय के साथ आलस्य और लापरवाही ने इसे अपनी चपेट में ले लिया। लोग मेहनत तो बहुत करते, लेकिन परिणाम इतना कम मिलता कि वे कहते — “ऊँट के मुँह में जीरा”। ऊपर से समस्याएँ इतनी उलझी हुई थीं कि उनका हाल “साँप के मुँह में छछूँदर” जैसा हो गया था — न तो निगलते बनता और न ही उगलते।

इसी गाँव में आचार्य हरिदत्त पाण्डेय जी रहते थे। विद्वता के कारण लोग उन्हें “चलता-फिरता वेद” कहते थे। वे अक्सर गाँव वालों को समझाते थे कि “साँच को आँच नहीं”, “विद्या धन से बड़ी है” और “ज्ञान ही शक्ति है।”

एक दिन उन्होंने गाँव वालों को चौपाल पर बुलाया। गाँव वाले अपने काम निपटा कर जैसे— दूध दुहकर, मवेशी बाँधकर और खेतों से लौटकर सब चौपाल में इकट्ठा हुए। अलाव जल रहा था, बच्चे ढोलक पर झोड़ा गा रहे थे। उसी माहौल में आचार्य जी बोले—

बच्चों सुनो, हिन्दी भाषा वेदों की वाणी है। इसमें जीवन जीने की राह, सत्य का प्रकाश और कर्म का संदेश छिपा है। यह ऐसी है जैसे “अंधे को आँखें” मिल जाएँ। जिसने इसे अपनाया, उसने हर कठिनाई पर विजय पाई।

सभा में अर्जुन नाम का युवक बोला—
गुरुदेव, हमारी हालत तो “आसमान से गिरे, खजूर में अटके” जैसी है। पढ़ाई में सफलता नहीं मिलती, खेती में लाभ नहीं और शहर में नौकरी नहीं।

आचार्य जी मुस्कराए और बोले—
बेटा, याद रखो “मेहनत का फल मीठा होता है”। जैसे “बूँद-बूँद से सागर भरता है”, वैसे ही निरंतर प्रयत्न बड़े परिणाम देते हैं। यदि तुम वेदों की शिक्षा और हिन्दी भाषा को जीवन में अपनाओगे, तो खेत भी “सोना उगलेंगे” और शिक्षा भी अवश्य रंग लाएगी। वेदों का संदेश स्पष्ट है कि “कर्म ही धर्म” है। इसलिए हिन्दी भाषा और वेद-वाणी से जुड़ो, सफलता निश्चित तुम्हारे कदम चूमेगी।

तभी एक महिला बोली—
गुरुदेव, हालात तो ऐसे हैं जैसे “आग के दरिया से गुजरना”। खेतों में जान लगाओ तो जंगली जानवर “सब चौपट” कर देते हैं और घर का खर्च बढ़ता जाता है।

आचार्य जी ने शांत स्वर में कहा—
बेटी, धैर्य रखो। “सब्र का फल मीठा होता है”। याद रखो, “जहाँ चाह, वहाँ राह”। जब आप सब मिलकर एक साथ खड़े होंगे, तब हर समस्या का हल निकलेगा। क्योंकि “एकता में बल है”। यही वेदों का उपदेश है।

सभा में बैठे बुजुर्ग गोविंद दा बोले—
गुरुदेव, लोग जिम्मेदारी से बचने के लिए बहाने बनाते हैं। जैसे कहावत है— “नाच न जाने, आँगन टेढ़ा”

आचार्य जी ने गंभीर स्वर में कहा—
वेद कहते हैं— “जो बोओगे, वही काटोगे” और “जैसा करोगे, वैसा भरोगे”। इसलिए बहाने छोड़कर मेहनत और सत्य की राह पर चलो।

तभी एक छोटा बच्चा मासूमियत से बोला—
गुरुदेव, मेरी माँ हमेशा कहती है— “कर भला, तो हो भला”

आचार्य जी ने दुलारकर कहा—
सही कहा बेटा, यही तो वेदों का सार है। “मन चंगा तो कठौती में गंगा”। यदि मन पवित्र है, तो गाँव की गाड़-गदेरों का पानी भी गंगाजल बन जाता है। यही है हिन्दी वेदों की वाणी जो “साधारण को असाधारण बना देती है”

सभा के अंत में आचार्य जी ने समझाया—
बच्चो, याद रखो “करत-करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान”। यदि तुम वेदों की वाणी का अभ्यास और पालन करते रहोगे तो ज्ञान और आचरण मिलकर जीवन को “सोने पे सुहागा” बना देते हैं। यही है हिन्दी वेदों की वाणी का सार।

गाँववालों ने ठान लिया कि अब आलस्य और बहाने छोड़ देंगे। एकजुट होकर खेतों को सँवारने लगे, बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान देने लगे। धीरे-धीरे गाँव में खुशहाली लौट आई। खेत हरे-भरे हो गए, बुरांश की मिठास फिर से घर-घर गूँजने लगी। जो लोग पलायन कर गए थे, वे भी गाँव लौट आए।

अब पूरे गाँव में यही लोकोक्ति गूँजने लगी—
“सच्चे ज्ञान का दीपक कभी नहीं बुझता।”

अतः कहा गया है—
हिन्दी वेदवाणी या, सत्यधर्मप्रकाशिनी।
सा नयति जनान् सर्वान्, समृद्धेः पथसंधिषु॥
(हिन्दी वेदों की वाणी है, जो सत्य और धर्म का प्रकाश करने वाली है। यह सब लोगों को समृद्धि के मार्ग पर ले जाती है।)

योगेश गहतोड़ी ‘यश’

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