
“नदियों सा बहता रहा, पर्वत से एठा रहा
भूकंपों के झटकों सी जिंदगी में,
मैं प्रवाल जैसा लिपटा रहा।
रंगहीन हो गई जिंदगी मेरी,
पर मैं प्रकाश से मिलता रहा।
जब आया उबाल ज्वालामुखी जैसा,
मैं धूल कण में बिखर गया।
जब उसी धूलकण से जलवाष्प बना,
और बादल बनकर बरस गया।
संघनन हुआ विचारों का तो,
कोहरा बनकर सिमट गया।
जब चली हवाएं उत्तर दक्षिण,
मैं चक्रवातों को भूल गया।
क्यों में अपनी गुप्त ऊष्मा,
समुद्र से लेना भूल गया।
गहराई मेरा गर्त बना,
मैं सौर बजट में लूट गया।
ब्रह्मांड सा मन यह मेरा ,
तारों पर निशाना हैं, खोज अभी भी ब्लैक होल की
डार्क एनर्जी सा जा डूबा ..!
पहचान मेरे अपने हक की ,
मैं क्रस्ट आसमां पा गया.
लेखिका :- Neetu nagar amber narsinghgarh Madhya Pradesh
Note:- उपरोक्त लाइन को बारीक से विश्लेषण करें।