
थोड़ा मुश्किल है
कहूँ या रहने दूँ—ये कहना थोड़ा मुश्किल है,
तू सच है या सपना—ये जानना थोड़ा मुश्किल है।
तेरी आवाज़ आई थी, भागा मैं बावले की तरह,
पर रोज़ की तरह चली गई—रोकना थोड़ा मुश्किल है।
ख़्वाब में तो आती है तू हर रात मुस्कुराकर,
हक़ीक़त में क्यों नहीं—ये सोचना थोड़ा मुश्किल है।
सोचा था इस बार तुझे रोक लूँ हर हाल में,
पर अगर तू रूठ गई तो जीना थोड़ा मुश्किल है।
जाना अगर है तो जा, मगर लौटकर फिर आना,
तेरे बिन टूटे दिल को सँभालना थोड़ा मुश्किल है।
तेरे इंतज़ार में आधा जगता-आधा सोता हूँ,
तू न आई तो फिर जी पाना थोड़ा मुश्किल है।
आर एस लॉस्टम