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इसीलिए आई हूं।

चाँद को सोता छोड़ निकल आई हूं,
सूरज को जगाना है, अंधेरा भगाना—इसीलिए आई हूं।

अंधेरों ने उजाले को ढक रखा है,
झूठ की नक़ाबें हैं उतारना, सच दिखाना—इसीलिए आई हूं।

मुश्किल है अधमरे को जगाना मगर,
अंधकार को हर कोने से डराना—इसीलिए आई हूं।

सफ़ेद सायों में लिपटे हैं मुर्दा लोग,
सच्चाई को जगाना है, झूठ हराना—इसीलिए आई हूं।

चुनाव की बिसात पे खड़े हैं मुर्दे सभी,
धूर्तों को हराना है, जन को बुलाना—इसीलिए आई हूं।

नेताओं की आत्मा कहाँ अब बची है,
शरीर नहीं, आत्मा को जगाना—इसीलिए आई हूं।
आर एस लॉस्टम

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