
भव-भय हारिणि, शोक विनाशिनि, रुपराशि अतुलित भारी।
हे सुमुखि सुलोचनि, शशि सम आननि, सब दुख मोचनि माँ न्यारी।
कमलनि-सी कोमल, शुभ्र सी शीतल, है जल-सी उज्जवल प्यारी।।
भव-जलधि नसावति, हर्ष बढ़ावति, कहुँ कैसे सुषमा सारी।।
रवि-सी द्युति न्यारी, शशि सम प्यारी, लागे शीतल भयहारी।
हो जगत प्रकाशिनि, कमल निवासिनि, तेरी महिमा अविकारी।
तू निरंकार, हर अहंकार है, न पावें पार, सब पर भारी।
तव रुप मनोहर, सुमधुर है स्वर, हरती विकार कालिख कारी।।
हे मातु सुखद रज, हैं पद पंकज, तू नीरज-सी तमहारी।
देती जग जीवन, सुखद संजीवन, ज्यों चले पवन सम मतवारी।
कर शीतल छाया, हरती माया, उज्जवल काया गुणकारी।
कारे कजरारे, नयन तुम्हारे, सब रस गारे, शोभारी।।
मृदु मन्जुल सी, मधु अन्जलि-सी, हरती तन-मन का अघ भारा।
है दरस न्यारा अति शुभ प्यारा, पीवे अमिय जगत सारा।
हैं ललित मनोहर, अंगनि सुन्दर, लगें वसन, जेवर न्यारा।
रस है बरसाती, पान कराती, मुस्काके, बहाती रसधारा।।
रचनाकार-
पं० जुगल किशोर त्रिपाठी (साहित्यकार)
बम्हौरी, मऊरानीपुर, झाँसी (उ०प्र०)