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निर्दय

उस गली से अब मैं गुजरता नहीं,
याद बनकर भी दिल से उतरता नहीं।

वो मिली थी वहीं, ख्वाब टूटे सभी,
उसकी खुशबू मगर आज बिखरता नहीं।

जान कहकर लिपटती थी सीने से वो,
उसके जलवे कोई भी संवरता नहीं।

रूह ने जब मेरी रूह को छू लिया,
उस नशे का असर आज उतरता नहीं।

वक़्त बेरहम था, वक़्त कठोर बहुत,
दिल का ज़ख़्मों से रिश्ता उभरता नहीं।

मैं भुलाने चला, भूल पाया नहीं,
तेरे होने का जादू बिखरता नहीं।

जब भी जाता हूँ उस नगर के करीब,
तेरा चेहरा मेरी नज़र से उतरता नहीं।

उस गली से मगर अब गुजरता नहीं,
जिस गली में कभी तू ठहरता नहीं।

“रूपेश” का है दिल बस उसी के लिए,
इश्क़ उसका कभी भी बिखरता नहीं।

आर एस लॉस्टम

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