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ब्रह्मनादचतुष्टयी का ज्योतिषीय संबंध

ब्रह्मनादचतुष्टयी—अकार, उकार, मकार और ॐकार जो मानव जीवन और सृष्टि के चार मूल आयामों की दिव्य ध्वनियाँ हैं। वेदांत और ज्योतिष परंपरा में इन्हें केवल उच्चारण नहीं, बल्कि ब्रह्म के जीवंत स्वरूप के रूप में माना गया है। अकार से जीवन की शुरुआत होती है और यह सृष्टि तथा आत्मज्योति का प्रतीक है। यह सूर्य और गुरु तथा प्रथम भाव (लग्न) से जुड़कर व्यक्ति के व्यक्तित्व, आत्मबल और आत्मविश्वास को उजागर करता है। उकार जीवन के पोषण, संवेदनशीलता और चित्त की शांति का स्वर है, जो चन्द्र और शुक्र तथा चतुर्थ भाव से हृदय, सुख, करुणा और सौंदर्य को प्रदर्शित करता है, जिससे व्यक्ति में प्रेम, संवेदना और सामाजिक समरसता का विकास होता है। मकार संहार, तप और समाधि का नाद है, जो शनि, मंगल और केतु तथा अष्टम भाव से जुड़कर जीवन में परिवर्तन, अनुशासन, रहस्य, मृत्यु और पुनर्जन्म के गूढ़ रहस्यों का अनुभव कराता है। इस प्रकार ये तीनों नाद—अकार, उकार और मकार जो व्यक्तित्व, संवेदना और कर्मफल के माध्यम से जीवन की मूल प्रक्रियाओं को संचालित करते हैं और आध्यात्मिक यात्रा की नींव तैयार करते हैं।

अंतत: ॐकार, जो अ+उ+म का समाहार है, तुरीय अवस्था और ब्रह्म की अखंड चेतना का प्रतीक माना जाता है। यह ब्रह्मनाद का चरम स्वरूप है, जिसमें अकार, उकार और मकार का सम्मिलन जीवन के सम्पूर्ण आयामों— सृष्टि, पोषण, परिवर्तन और मोक्ष का समग्र स्वर प्रस्तुत करता है। वेदांत में ॐकार ब्रह्म के चार स्वरूपों का उद्घोष करता है और सभी प्राणियों के अस्तित्व में दिव्य सामंजस्य स्थापित करता है। ज्योतिषीय दृष्टि से यह गुरु और समस्त ग्रहों की समन्वित शक्ति के साथ द्वादश भाव से जुड़ा है, जो मोक्ष, आत्मा की शरण और ब्रह्म में विलय का द्योतक है। जब यह नाद शुभ रूप में प्रकट होता है, तब साधक में वैराग्य, आत्मज्ञान, शांति, करुणा और परम आनंद की अनुभूति होती है। जब इसका प्रभाव अशुभ होता है, तो यह दिशाहीनता, मोहभ्रम या आत्मवियोग जैसी प्रवृत्तियाँ उत्पन्न कर सकता है। इस प्रकार ॐकार जीवन में मोक्ष और आत्मानुभूति का दिव्य मार्गदर्शक है, जो साधक को उसकी परमात्मा-साधना और ब्रह्मानुभूति की ओर अग्रसर करता है।

१. अकार (अ)
अकार (अ) वेदांत और ज्योतिष में सृष्टि का प्रथम स्वर और आत्मा की चेतना का प्रतीक माना जाता है। यह नाद जीवन के आरंभ, आत्मा की जागृति और सृजनात्मक शक्ति का द्योतक है। वेदांत के अनुसार “अ” से समस्त प्राण और तत्वों का प्रवाह प्रारंभ होता है, यह अग्नि तत्व का प्रतीक है, जो ऊर्जा, प्रकाश और चेतना का उद्घोष करता है। ज्योतिषीय दृष्टि से इसका गहरा सम्बन्ध सूर्य और गुरु से है। सूर्य आत्मा, तेज और जीवनशक्ति का अधिपति है, जबकि गुरु प्रज्ञा, सद्ज्ञान और विस्तार का कारक ग्रह है। दोनों ग्रह मिलकर अकार को न केवल प्राणशक्ति का, बल्कि प्रकाशमान चेतना का रूप देते हैं। भावों में अकार का सम्बन्ध प्रथम भाव अर्थात् लग्न से है, जो अस्तित्व, आत्मस्वरूप और व्यक्तित्व की नींव का केंद्र माना जाता है।

जब सूर्य और गुरु शुभ स्थिति में होते हैं, तब अकार व्यक्ति को तेजस्वी, विद्वान, प्रज्ञावान और आत्मविश्वासी बनाता है। इसका प्रभाव व्यक्तित्व में आकर्षण, आत्मबल और ज्ञान के रूप में प्रकट होता है। किंतु यदि ये ग्रह पीड़ित या अशुभ प्रभाव में हों, तो अहंकार, क्रोध, स्वार्थ, अस्थिरता और अंधत्व जैसी प्रवृत्तियाँ उत्पन्न हो सकती हैं, जिससे आत्मचेतना धूमिल हो जाती है। इस प्रकार अकार न केवल सृष्टि और आत्मबोध का शुभ प्रेरक है, बल्कि ज्योतिषीय दृष्टि से यह सूर्य का प्राण-स्वर है, वह दिव्य ऊर्जा जो जीवन को उत्पन्न कर अस्तित्व की अनुभूति कराती है और मनुष्य को उसकी मूल ज्योति से जोड़ती है।

२. उकार (उ)
उकार (उ) वेदांत और ज्योतिष में संवेदना, पोषण और ऊर्ध्वगति का प्रतीक माना जाता है। यह नाद जीवन में विकास, प्रेम और करुणा की दिशा को प्रदर्शित करता है। तत्वतः इसका सम्बन्ध जल से है, जो स्निग्धता, शीतलता और जीवन-धारण की शक्ति का आधार है। ज्योतिषीय दृष्टि से उकार का गहरा सम्बन्ध चन्द्र और शुक्र से है। चन्द्र मन, मातृत्व, भावनाओं और पोषण का अधिपति है, जबकि शुक्र प्रेम, सौंदर्य, रसानुभूति और कलात्मकता का अधिष्ठाता है। भावों में इसका संबंध चतुर्थ भाव से है, जो हृदय, माता, गृह और आंतरिक शांति का कारक माना जाता है। इस प्रकार उकार व्यक्ति के जीवन में संवेदनशीलता, करुणा और प्रेम का प्रवाह लाता है, जिससे संबंधों में मधुरता और सामाजिक-संस्कृति में सौहार्द उत्पन्न होता है।

जब चन्द्र और शुक्र शुभ स्थिति में होते हैं, तब उकार व्यक्ति को करुणामय, संवेदनशील, प्रेमपूर्ण, कलात्मक और सौंदर्यप्रिय बनाता है। उसके भीतर दूसरों को पोषित करने और संबंधों को मधुर बनाने की सहज क्षमता प्रकट होती है। किंतु यदि ये ग्रह अशुभ प्रभाव में हों, तो यही नाद मोह, अति-आसक्ति, अस्थिर मन, भोग-विलास और असंतोष जैसी प्रवृत्तियों को जन्म देता है, जिससे मानसिक शांति और भावनात्मक संतुलन भंग हो सकता है। इस प्रकार उकार ज्योतिष में संवेदना और वृद्धि का वह दिव्य स्वर है, जो जीवन को स्निग्धता, माधुर्य और करुणा से संपन्न करता है।

३. मकार (म)
मकार (म) वेदांत और ज्योतिष में “मिति, मापन और लय” का प्रतीक माना जाता है। यह स्वर जीवन के नियम, अनुशासन, परिवर्तन और संहार-नवसृजन की प्रक्रिया को उद्घाटित करता है। तत्वतः इसका संबंध वायु से है, जो गति, संक्रमण और परिवर्तन का आधार है। ज्योतिषीय दृष्टि से मकार का प्रमुख संबंध शनि और मंगल से है। शनि समय, सीमा, अनुशासन और कर्मफल का स्वामी है, जबकि मंगल क्रियाशक्ति, साहस और संहारक ऊर्जा का अधिपति है। भावों में इसका सम्बन्ध अष्टम भाव से है, जो परिवर्तन, मृत्यु, गूढ़ रहस्य और पुनर्जन्म का प्रतीक माना जाता है। इस प्रकार मकार जीवन को नियम, लय और अनुशासन का दिव्य स्वर प्रदान करता है।

जब शनि और मंगल शुभ स्थिति में होते हैं, तब मकार व्यक्ति को संयम, धैर्य, साहस और कर्मनिष्ठा का वरदान देता है। व्यक्ति कठिन परिस्थितियों में भी संतुलन बनाए रखता है और परिश्रम एवं संघर्ष के बल पर सफलता प्राप्त करता है। किंतु जब ये ग्रह अशुभ प्रभाव में हों, तो मकार कठोरता, हिंसा, रोग, मानसिक अशांति, दु:ख और कभी-कभी अकाल मृत्यु जैसी स्थितियों को जन्म दे सकता है। इस प्रकार मकार न केवल जीवन में लय और अनुशासन का कारक है, बल्कि परिवर्तन और पुनरारंभ की दिव्य यात्रा का आधार भी है।

४. ॐकार (प्रणव नाद)
ॐकार (प्रणव नाद) अ+उ+म का समाहार है, जो तुरीय अवस्था, अखंड चेतना और ब्रह्म की सम्पूर्णता का प्रतीक माना जाता है। यह ब्रह्मनाद का चरम स्वरूप है, जो सम्पूर्ण सृष्टि का मूल है और सभी प्राणों तथा नादों का सामंजस्य प्रकट करता है। तत्वतः इसका संबंध आकाश से है, जो निरंतरता, अनंतता और सर्वव्यापकता का द्योतक है। ज्योतिषीय दृष्टि से इसका संबंध समस्त ग्रहों के सामंजस्य से है, विशेष रूप से केतु से, क्योंकि केतु वैराग्य, आत्मज्ञान और मोक्ष का सूचक ग्रह है। भावों में ॐकार का सीधा सम्बन्ध द्वादश भाव से है, जो मोक्ष, आत्मा की शरण और ब्रह्म में विलय का प्रतीक है।

जब ॐकार शुभ स्थिति में प्रकट होता है, तब यह व्यक्ति को वैराग्य, आत्मज्ञान, शांति, करुणा और परम आनंद की अनुभूति कराता है। उसका जीवन धर्ममय, करुणामय और लोककल्याणकारी होता है। किंतु यदि यह ऊर्जा असंतुलित हो या केतु पीड़ित हो, तो यह दिशाहीनता, उदासीनता, मोहभ्रम या पलायनवाद जैसी प्रवृत्तियाँ उत्पन्न कर सकती है, जिससे साधक भ्रमित होकर आत्मबोध से दूर हो सकता है। इस प्रकार ॐकार जीवन में मोक्ष और ब्रह्मानुभूति का दिव्य स्वर है, जो साधक को परमात्मा की ओर ले जाकर उसकी आत्मा को अनंत सत्य में विलीन कर देता है।

इस प्रकार ब्रह्मनादचतुष्टयी (अकार, उकार, मकार और ॐकार) का ज्योतिष से गहन सम्बन्ध है। ये नाद केवल ध्वनियाँ नहीं, बल्कि मानव जीवन के चार मूल आयाम—सृजन, पोषण, परिवर्तन और मोक्ष का प्रतीक हैं। ज्योतिषीय दृष्टि से ये ग्रहों और भावों के माध्यम से जीवन में शुभ और अशुभ परिणाम उत्पन्न करते हैं तथा व्यक्ति को उसके आध्यात्मिक मार्ग की ओर अग्रसर करते हैं। प्रत्येक नाद अपने ग्रहों और भावों के प्रभाव से जीवन की विशिष्ट ऊर्जा को प्रकट करता है: अकार- सूर्य और गुरु के माध्यम से व्यक्तित्व और आत्मबोध को उजागर करता है, उकार- चन्द्र और शुक्र की ऊर्जा से संवेदना और सौंदर्य को जागृत करता है, मकार- शनि और मंगल के संयोजन से अनुशासन, परिवर्तन और कर्मफल का अनुभव कराता है, और ॐकार- केतु तथा द्वादश भाव से मोक्ष और ब्रह्मज्ञान की अनुभूति कराता है।

योगेश गहतोड़ी “यश”
(ज्योतिषाचार्य)
नई दिल्ली – 18

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