
पहली बात तो ये कि सनातन धर्म और हिन्दी ही हमें सिखाती है कि अपनी बात कहने के पहले शिष्टाचार को कैसे बनाये रखना?
अब विषय पर आयें-
नहीं, हिन्दी सनातन धर्म का आधार नहीं है, बल्कि हिन्दी एक आधुनिक भाषा है और सनातन धर्म एक प्राचीन दार्शनिक और धार्मिक जीवन-पद्धति है। हिन्दी भाषा का सम्बन्ध भारत के एक विशिष्ट क्षेत्र से है, जबकि सनातन धर्म का अर्थ शाश्वत है और यह किसी विशेष भाषा या संस्कृति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन का एक स्वाभाविक नियम है।
सनातन धर्म का शाश्वत और व्यापक अर्थ-
सनातन शब्द का अर्थ है- शाश्वत या सदा बना रहने वाला, जिसका कोई आदि और अन्त नहीं है। यह किसी खास धर्म या विश्वास के बजाय जीवन का एक स्वाभाविक नियम है। यह हिन्दू धर्म के दार्शनिक आधार का प्रतिनिधित्व करता है, हालाँकि हिन्दू धर्म में सामाजिक, साँस्कृतिक और ऐतिहासिक विकास शामिल है। यह किसी पर विश्वास थोपने के बजाय मानव बुद्धि की स्वाभाविक जिज्ञासा और ज्ञान की खोज पर आधारित है।
हिन्दी भाषा का सम्बन्ध है-
हिन्दी भाषा का सम्बन्ध भारत के एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र से है, और इसे ‘हिन्दू’ शब्द से भी जोड़ा जाता है, जो सिन्धु नदी के आस-पास के निवासियों को दर्शाता है जबकि सनातन धर्म एक प्राचीन और व्यापक विचार है, जबकि हिन्दी एक विकसित भाषा है, जो आज के समाज में उपयोग की जाती है।
इसलिए, हिन्दी, हिन्दी भाषा है और सनातन धर्म जीवन का एक शाश्वत नियम है। दोनों को एक-दूसरे से जोड़ना सही नहीं होगा, क्योंकि सनातन धर्म किसी भाषा या सम्प्रदाय तक सीमित नहीं है।
हाँ! आज के सन्दर्भ में दोनों एक-दूसरे के परिपूरक जरुर बनते जा रहे हैं। ऐसा लगता है कि जैसे दोनों एक-दूसरे के लिए ही बने हैं। हिन्दी सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार में कविता, आलेखों, नाटकों, एकाँकी, निबन्धों और लघु उपन्यासों के माध्यम से सनातन धर्म को शशक्त और अधिक शाश्वत और दृढ़ तथा अडिग बना रही है। आज अनेक ऐसी संस्थायें हैं, जैसे हिन्दी साहित्य भारती झाँसी और साहित्यक सचेतना तथा स्वास्तिक पत्रिका, हिन्दी साहित्य संस्थान अयोध्या, मतंग के राम अयोध्या, हिन्दी साहित्य भारती व्रज प्रान्त आदि। जो सनातन धर्म के रख-रखाव और इसके प्रचार-प्रसार के लिए दृढ़ संकल्पित हैं और इनका माध्यम हिन्दी ही है। अनेक आज के समय में ऐसे विद्वान पुरुष और महापुरुष हैं जो सनातन धर्म का हिन्दी के द्वारा विदेशों में भी प्रचार-प्रसार कर रहे हैं और लोगों को इसका महत्व बताकर ज्ञान परोस रहे हैं।
सनातन धर्म और अध्यात्म के मूल में जो अस्तित्व की मूल मौन ध्वनि है, उसे हम हिन्दी में आज भली-भाँति सभी को बता रहे हैं।
चाहे श्रीमद्भागवत महापुराण हो या भगवत् गीता, चाहे, वेद हों या पुराण, उपनिषद हों या रामायण तथा विभिन्न धार्मिक और वैदिक ग्रन्थ, सभी को हिन्दी भाषा ने गहराई से समझा और निखारा है विभिन्न गोष्ठियों के माध्यम से, कवि-सम्मेलनों के माध्यम से तथा अन्य प्रचार-प्रसार माध्यमों से। और ये सभी हम लोग हिन्दी में कर रहे हैं, इससे जहाँ एक ओर हिन्दी भाषा को दृढ़ता और पारदर्शिता और गरिमा मिल रही है, वहीं हमारे सनातन धर्म को भी नयी ऊर्जा और बल मिल रहा है। धन्यवाद!
हमारे भक्तिकाल, रीति कालीन, छाया वादी और आधुनिक युग के कवियों, ऋषि-मुनियों और सन्तों ने सनातन धर्म की बहुत ही चीजें हिन्दी भाषा उद्घाटित की हैं।
अत: कहा जा सकता है कि आज के सन्दर्भ में हिन्दी से बेहतर और कोई भाषा नहीं जो सनातन धर्म को यथेष्ट ऊँचाई पर ले जा सके।
आलेख-
पं० जुगल किशोर त्रिपाठी (साहित्यकार)
बम्हौरी, मऊरानीपुर, झाँसी (उ०प्र०)