
यह सच है कि आजकल सारे रिश्ते
बेचारे मोबाइल ढो रहे हैं ।
बढ़ रही अपनों से दूरी और
अजनबी दूर वाले पास हो रहे हैं ।
पास इतने की अपनों से
थोड़ा स्पेस चाहिए।
बढ़ रही है आज चुप्पी
संवाद सब मौन हो रहे हैं।
यह अकेला मोबाइल बेचारा
कितना बोझ ढो रहा है।
हर घड़ी दबाते नस इसकी
चेहरा भी रगड़ खा रहा है ।
फिर भी बन बैठा शहंशाह
आज देखो ! बिन इसके..
कहां कुछ काम हो रहा है।
भुला बैठा मानव पत्राचार
व्यवहार सब कुछ देखो!अपनी
शारीरिक क्षमता भी खो रहा है ।
उलझ गया मानव अपनी
बनाई तकनीकी में ऐसे…
इससे चंगुल छुड़ाना आज
उसको कितना दुष्कर हो रहा है।
‘उर्मि