
सत्य गमने प्रकाश बना ,
मिथ्या गमने बना अंधेर ।
सत्य हेतु ही दिवा बना ,
असत्य निशा कहे टेर ।।
दिवा निशा मध्य मेड़ है ,
अस्तांचल का यह बेर ।
कृष्णपक्ष में जब उगते ,
बहुत तारे ये दूर अबेर ।।
असत्य रंग श्याम हुआ ,
जस श्याम रंग शनिदेव ।
श्यामल वर्ण दोनों मिले
कैसे ये जयते सत्यमेव ।।
मिथ्या है छाया वृक्ष का ,
नहीं वृक्ष वहाॅं पर कोय ।
छाया रूप जो वृक्ष खड़ा ,
वही मिथ्या कलि होय ।।
सत्य असत्य युद्ध चला ,
चल रहा भीषण संग्राम ।
लड़ रहे दोनों ही मेड़ पर ,
सत्य जीत बनाता धाम ।।
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )
बिहार ।