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श्राद्धकर्म- पितृपक्ष

भादों मास की पूनम तिथि से,
पन्द्रह दिवस समय जो आय।
श्राद्ध और पितरों का तर्पण,
करें सभी गृह, तीरथ जाय।।

स्वयं करें या पण्डित जी से,
करवाये घर में सुखमान।
सूकर क्षेत्र, गया में जाकर,
विधि-विधान से करके ध्यान।।

बिना खिलाये पितरों को न,
भोजन करें कभी ये जान।
अन्न पराया अभी न खायें,
जब तक पितरपक्ष दिनमान।।

श्राद्ध कर्म में पान न खायें,
मालिश तेल करें न साज।
रहें जितेन्द्रिय, संयम से नर,
संग्रह नहीं, करें शुभ काज।।

एक समय ही भोजन लेवें,
बचें यात्रा से नर-नार।
श्राद्ध गृहण कर, करें न मेहनत,
बचें प्रतिग्रह से उर धार।।

तीन विप्र से अधिक न टेरें,
इतने ही हों रिश्तेदार।
ब्रह्मचर्य, सत का कर पालन,
करें श्राद्ध को गृहण उदार।।

शुद्धि, अक्रोध, अत्वरिता तीनों,
तिल, दोहित्र सुता-सुत और।
कुतपकाल ये तीनों होतीं,
हैं पवित्र अति ज्यों सिरमौर।।

अभिजित नखत काल शुभ होता,
हो पवित्रता श्राद्ध महान।
मन को रखें शुद्ध, हो पावन,
भाव विमल हरि विप्र सुजान।।

होय नहा-धोकर अति पावन,
श्राद्ध वस्तुयें, द्रव हो शुद्ध।
नर-नारी दोनों हों हर्षित,
शुद्ध चित्त, तन भी हो शुद्ध।।

श्राद्ध भूमि भी पूर्ण शुद्ध हो,
गोबर व गौमूत्र लियाय।
करे शुद्ध लीपन कर भू को,
मन्त्रोचारण शुद्ध महान।।

ब्राह्मण शुद्ध-बुद्ध मन वाला,
तम्बाकू, जर्दा न खाय।
मन हो शुद्ध, भावना पावन,
श्राद्धकर्म कीजे हरषाय।।

रचनाकार-
पं० जुगल किशोर त्रिपाठी (साहित्यकार)
बम्हौरी, मऊरानीपुर, झाँसी (उ०प्र०)

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