
हिंदी है मधुर वाणी, श्रृंगार-रस प्रेम जगाए,
मातृभाषा अपनाकर, हास्य-रस मुस्काए।
दीन-दुखी के आँसुओं में, करुणा का उजियारा,
अन्याय पर उठती वाणी, रौद्र-ज्वाला का सहारा।
वीरों के जयघोष में गूँजे, वीर-रस का अभिमान,
राजभाषा बन शौर्य भरे, भयानक का संदेश महान।
कुरूपता पर उठे घृणा, 🕸बीभत्स स्वर मुखराए,
सत्य-सौंदर्य की राह दिखा, हर बुराई हटाए।
अद्भुत रस में चमके हिंदी—ज्ञान का उजियारा,
नवचेतना के दीप जलें, जग हो आलोकित सारा।
शांत-रस बहे मन में, भय का अंधकार मिटाए,
भावों की सविता बनकर, हिंदी राष्ट्रभाषा कहलाए।
योगेश गहतोड़ी “यश”