
लेखिका नीतू धाकड़ (अम्बर)
पहचान करना ही तो कठिन है ,
इन मुखौटों का।
बाकी तो हुनर है इनका दिखाने का।
रखते हैं गिरगिट की तरह,
बहुत रंग।
जब मौसम मिले तो बदल जाया करते हैं।
मूल्य अपना ये स्वयं व्यवहारों में,
बतलाते हैं।
और मुंह पर अच्छा बनना,
और पीठ पीछे बोलते हैं।
इंसान की पहचान नहीं जरूरी,
उसकी ज़रूरत हो गयी जरूरी।
पहचान करना ही तो कठिन है ,
इन मुखौटों का।
बाकी तो हुनर है इनका दिखाने का।
इंसानियत रखो ज़िन्दा और,
बनाओं अपनी पहचान।
मानव बन मनावता निभाओ,
जीवन को सफल बनाओ।