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मैं एक गृहणी

मेरी बस इतनी सी पहचान हैं,,
किसी की बेटी हूं मैं, किसी की बहु मैं,,
किसी की पत्नी हूं मैं, किसी की मां मैं,,
बस यही मेरी पहचान है ,
की मैं एक गृहणी हूं।।

एक घर के लिए पराई हूं मैं,,
दूसरे के लिए पराए घर से आई हूं मैं,,
एक घर की रौनक हूं मैं,
दूसरे घर का मान हूं मैं,,
मेरी बस यही पहचान हैं ,
की मैं एक गृहणी हूं।

एक परिवार की खुशियों का खजाना हूं,
एक परिवार की खुशियों का ख्याल हूं,
एक परिवार की लाडो रानी हूं,
एक परिवार की बहु रानी हूं,
मेरी बस यही पहचान हैं,
की में एक गृहणी हूं।।

एक परिवार में रिश्तों की हमजोली हूं,
एक परिवार में रिश्तों की धुरी हूं,
कहीं अभिमान हूं, तो कहीं उपेक्षित हूं,
मेरी बस यही पहचान हैं,
की मैं एक गृहणी हूं।।

हर रिश्ते में एक भूमिका है मेरी,
पर हर रिश्ते में मेरा कोई वजूद नहीं,
किसी को मुझ पर गर्व नहीं,
किसी को मुझ पर नाज़ नहीं,
मेरी बस यही पहचान हैं,
की मैं एक गृहणी हूं।

बनाकर खाना जब परोसती हूं,
एक शब्द बहुत अच्छा बना है,
को गोल्ड मैडल समझती हूं,
मेरी बस यही पहचान हैं,
की मैं एक गृहणी हूं।

हो कोई परेशान एक सदस्य ,
मेरे परिवार से,
रात दिन उसकी परेशानी दूर करने का जतन करती हूं,
मेरी बस यही पहचान है,
की मैं एक गृहणी हूं।

आंच आए जो मेरे परिवार पर,
तो ढाल बन मैं  एक प्रहरी हूं,
चार पहर है जीवन के मेरे,
एक में खुशमिजाज हूं,
दूसरे में सहमी हूं,
तीसरे में घर की मुखिया हूं,
चौथे में उपेक्षती हूं,
बस यही मेरी पहचान हैं ,
की मैं एक गृहणी हूं।।

कहने को किसी की बेटी हूं,
किसी की बहु, किसी की जीवन  संगनी,
तो किसी की जीवन दाता हूं,
हर रिश्ते की में एक पहचान हूं,
बस मेरी यही पहचान हैं,
की मैं एक गृहणी हूं
हां मैं एक गृहणी हूं।

जिसकी कोई पहचान नहीं होती ,हर रिश्ता ही उसकी पहचान हैं, हां मैं वही रिश्तों की डोर हूं जो अगर मजबूत ना हो तो हर रिश्ता बिखर जाता हैं,
मेरी बस यही पहचान हैं,
की मैं एक गृहणी हूं।।

जय माता जी की
विद्या बाहेती  महेश्वरी राजस्थान।
जय माता जी की।।

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