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अजनबी

कभी कभी जीवन में ऐसे व्यक्ति मिलते हैं जिन से हम बिल्कुल अनजान होते हैं ,जिनसे हम पहले कभी मिले ही नहीं होते , और आज के समय की बात नहीं करूं तो सबसे अजनबी दो शादी करने वाले होते थे जो सिर्फ सुनी सुनाई तारीफों पर उस शख्स की एक छवि अपने मन में बनाया करते थे । आज में उन्हीं दो अजनबियों से आपको रूबरू करवाऊंगी ,क्योंकि ये अजनबियों वाली शादी अब कहानियों में ही रह गई हैं । वो शादियां वाकई उम्र भर निभाई जाती थी ,उसमें समर्पण होता था दोनों तरफ से हां लड़कियों को दब कर रहना होता था । यहीं बस थोड़ा बदलने की जरूरत थी पर सब कुछ ही बदल गया  खेर छोड़ो अपना विषय ये नहीं हैं तो इसपर बात नहीं करती हूं ।

दो अनजान शख्स
रामप्रताप जी लड़का बहुत अच्छा हैं , घर परिवार भी बढ़िया है, हमारी बिटिया बहुत खुश रहेगी वहां आप कुछ न सोचें अच्छा रिश्ता हैं ।
ये बोल थे बनवारी काका के जिनका काम था शादी के लिए रिश्ते बताने , ना जाने कितनो के ही रिश्ते करवा चुके थे ।
कमरे में चाय का ट्रे लाती हुई सुमन एकदम से ठिठक गई ,दिल जोर जोर से धड़कने लगा ,हाथ कांपने लगे जैसे तैसे चाय अपने पिताजी को थमा कर जल्दी से कमरे से बाहर आ गई ,तभी मां ने आवाज लगाई सुमन बिटिया क्या हुआ ? क्यों भागी चली आई बनवारी काका से , काकी का हाल नहीं पूछी? सुमन शर्म से नजरे भी नहीं उठा पा रही थी ,मां ने उसे अपने पास बुलाकर प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली ये दिन तो सबके जीवन में आता है लाडो ऐसे घबराते नहीं हैं ,अभी तो सिर्फ रिश्ते की बात चली हैं अभी तो तुम्हारे पिताजी पहले लड़के को तुम्हारी तस्वीर भेजेंगे अगर उन्हें तुम पसंद आई तो पिताजी तेरे लिए लड़का देखने जाएंगे ।
तभी पिताजी आंगन में आते है और बोलते हैं सुमन की मां बिटिया को तैयार कर दे इसकी दो तस्वीर खिंचवानी हैं वो बनवारी का लड़का आ रहा कैमरा लेकर।
सुमन की हालत तो ऐसी हो गई जैसे काटो तो खून नहीं, उसकी मां अपनी सास से पूछती हैं “मां आज एक रिश्ता आया हैं अपनी लाडो के लिए बनवारी लाल जी कह रहे थे बहुत ही अच्छा घर घराना हैं लड़का भी पढ़ा लिखा हैं , इसी बाबत सुमन के बाऊजी इसकी तस्वीर खिंचवाना चाहते हैं क्या मैं रमा काकी की बनरी को बुला लाऊं वो लाडो को तैयार कर देंगी दोनो सहेलियां हैं और आज के तौर तरीकों को भी जानती हैं तो मैं जाऊं”?

दादी: राम ने मुझे तो कुछ नहीं बताया  तुम धनिलुगाई खुद ही सब फैसला ले लिए हो तो काहे इस बुढ़िया से पूछ रही हो जो समझ आए करो ।

सुमन की मां: नहीं मां ऐसा कुछ नहीं हैं वो अभी तो बनवारी लाल जी आए थे और कल दो दिन बाद  ही उस गांव में किसी काम से जा रहे हैं तो अभी तस्वीरे खिंचवाने तो तस्वीर निकल जायेगी।

दादी: हां , हां तुम ही जानो ये आज कल के तमाशे हमारे जमाने में न ही तो कोई तस्वीरे होती थी हमने तो न देखी तेरी कोई तस्वीर बना लाए ना तुझे अपने घर की शोभा  दादी मुंह बनाती हुई बोली।

तभी रामप्रताप जी अपनी मां के कमरे में दाखिल हुए और बोले मां वो तब की बात थी आज जमाना बदल गया हैं और जमाने के साथ चलाना है तो हमें भी बदलना होगा । मां तस्वीर ही तो मांग रहें कौनसा पहले लड़की देख रहे हैं और ये तो अच्छी बात है ना की जिस से उम्र भर का नाता जुड़ रहा हैं कम से कम उसकी सूरत तो पता चल जाए इन तस्वीरों से । सुमन की मां आप जाइए और लडों को तैयार कीजिए ।
थोड़ी देर में सुमन की सहेली रेखा उसे साड़ी पहना कर तैयार कर देती हैं और कहती हैं नजरे उठाकर देख तो ले पगली तू कितनी खूबसूरत लग रही हैं, देख जो भी तेरी इस रूप में तस्वीर देखेगा न वो तो तस्वीर को ही अपना दिल हार जाना हैं ।

धत पगली कैसी बाते कर रही है भला यूंही कोई अपना दिल हारता हैं एक प्यारी सी चपत लगाते हुए सुमन बोलती हैं ।
जब तस्वीरे खिंचवाने के लिए सुमन पोज दे रही थी मानो कोई बड़ा इम्तिहान देना हो ऐसा महसूस हो रहा था इतनी झिझक, इतनी शर्म की गालों पर बिना ब्लेस लगाए ही लाली बिखर रही थी।

दो दिन बाद बनवारी लाल जी दूसरे गांव सुमन की तस्वीरे लेकर पहुंचे ।
एक हवेली जैसे घर के बाहर बैठक में बैठे तस्वीरे दिखा रहें थे ,ये देखिए लड़की नहीं लक्ष्मी हैं, बहुत ही संस्कारी और गुणों की खान हैं 12वीं तक पढ़ी भी हैं हमारे कुलदीप के साथ खूब जोड़ी जेचेगी ।
तस्वीर को देख कर हरिगोपाल जी बोलते हैं देखने में तो लड़की बहुत सुंदर और संस्कारी भी लगती हैं आप उन्हें हमारी तरफ से ये समाचार दे दे की वो हमारे बेटे को देखने आ सकते हैं ।

ये समाचार लेकर बनवारी लालजी तो निकल गए।तस्वीर लेकर हरिगोपल जी अपनी पत्नी को दिखाते हैं और कहते हैं कुलदीप को देखा दीजिएगा और कहेगा वो लोग उसे देखने आयेगे तो आवारापन छोड़ थोड़ा दुकान में आ जाया करें।
जब कुलदीप घर आता है तो मां उसे सुमन की तस्वीर देती है कहते है तेरे पिताजी ने तेरे लिए लड़की पसंद कर ली है ये तस्वीर है देख ले , और अब ये दोस्तों के साथ घूमना फिरना कम कर थोड़ा दुकान भी जाया कर लला तुझे देखने लड़की वाले  आयेंगे ।
कुलदीप अपनी मां से तो कुछ नहीं कहता पर चुपके से एक तस्वीर उठा कर अपने कमरे में ले जाता हैं ,
उम्र कोई ज्यादा नहीं थी उसकी सिर्फ 21 बरस का ही था , तस्वीर में सुमन का मासूमियत से भरा चमकता चहरा उसके होठों पर मुस्कान बिखेर गई। तस्वीर को कुछ देर निहारने के बाद उसे अपनी डायरी में रख लेता हैं और कहता हैं जब तुम तस्वीर में इतनी सुंदर हो तो शायद हकीकत में तो हुस्न की परी ही लगती होगी।

कुछ दिन बाद सुमन के पिताजी कुलदीप को देखने आते है उसे दुकान में ही देख कर कुछ मामूली सवाल जवाब कर हरिगोपाल जी से बातचीत कर सुमन का रिश्ता तय कर देते हैं ।

इस प्रकार सुमन और कुलदीप एक दूसरे से बिलकुल अनजान होते हुए भी एक रिश्ते से जुड़ जाते हैं ।

जहां सुमन सिर्फ कुलदीप के नाम से ही शरमाकर लाल हो जाती हैं तो वहीं  कुलदीप उसकी तस्वीर से ढेरों बाते करता हैं ।

एक अजनबी अनजान शख्स के लिए सुमन खुद को पूरी तरह समर्पित कर देती हैं नहीं जानती की वो केसा है क्या स्वभाव है उसका क्या खुबिया है क्या खामियां हैं फिर भी उसे अपना जीवन साथी बना लेती हैं और अपना जीवन उसे और उसके परिवार को समर्पित कर एक नया संसार बसाती है।
उसी तरह कुलदीप भी सिर्फ उसकी तस्वीर देख अपने मन में उसकी एक छवि बना लेता हैं और अपना सब कुछ उसके साथ बांट लेता हैं अपने कमरे से लेकर अपने जीवन के सुख ,दुख, प्रगति अपना हर ख्वाब उसके साथ बांट लेता हैं और जीवन में एक नया रिश्ता जोड़ लेता हैं। चुपके से उसके लिए न जाने कितने ही तोहफे खरीद लेता हैं , अपनी होने वाली अर्धांगीन के लिए ।
दोनों ही एक अनजान शख्स के साथ अपनी जीवन यात्रा शुरू कर देते हैं ।

जीवन की यात्रा में वो दोनों कब अजनबी से  हमराज हो गए और कब उनके सपने एक हो गए उन्हें खुद ही पता नहीं चला कब दो अजनबी एक दूसरे के जीने की वजह बन गए।

ये एक जमाने में सच भी था ऐसा ही हुआ करता था दो अनजान शख्स का रिश्ता  जहां तकरार के साथ प्यार और समर्पण भी खूब होता था । वो अजनबी से एक दूसरे के लिए जरूरी बन जाते ।

जय माता जी की।
विद्या बाहेती राजस्थान।

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