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माता पिता का फर्ज

माता-पिता होने का फर्ज हर हाल निभाना।
क्या सही-गलत है बच्चों को बतलाना।
ताकि पड़े न कभी तुम्हें और उन्हें जीवन में पछताना।
मानाकि बहुत आसान नहीं है आज उन्हें समझाना।
लेकिन देखो कहीं पड़े न लोगों से नजरे चुराना।
बहुत जरूरी है तुम्हारा हर हाल में अपना फर्ज निभाना।
उनकी जीवन डगर में सही-गलत का फर्क उन्हें दिखलाना।
है जमाने में कुछ हवा इस तरह की बह रही।
बहुत आसान है उनका अपनी राह से डगमगाना।
लेकिन बहुत जरूरी है उन्हें अपने अनुभव से अंतर बतलाना।
मंजू की लेखनी का है यही कहना।
बच्चें तो रहते पौधों की भांति।
जैसे हमें पड़ता उन्हें समय-समय पर संवारना।
कभी कोई शाखा को काटना-छांटना।
बस बिल्कुल वैसा ही है हमारे बच्चों का जीवन।
उनके जीवन से भी पड़ता हमें कभी-कभी कुछ हटाना।
जो उन्हें हर मुसीबत से हर हाल हो बचाना।
चाहे पड़े हमें उसके लिए कभी नरम और कठोर बनना।
लेकिन…..
क्या सही-गलत है बच्चों को बतलाना।
ताकि पड़े न कभी तुम्हें और उन्हें जीवन में पछताना।
माता-पिता होने का फर्ज हर हाल निभाना।।

मंजू अशोक राजाभोज
भंडारा (महाराष्ट्र)

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